शनिवार, 13 दिसंबर 2008

गद्दार नेताओं को सबक सिखायेगी युवा शक्ति, सांसद भूले शहीदों को

देश के सांसदो ने उन शहीद जवानों को सात साल में ही भुला दिया जिन्होंने अपनी जान की कुर्बानी देकर संसद में हमला करने वाले आतंकियों को करारा जवाब दिया था। जवान हर रोज शहीद हो रहे हैं। ऐसे में जम्मू और काश्मीर में शहीद हो रहे जवानों को ये नेता कितना याद रखते होंगे समझा जा सकता है। पिछले माह मुम्बई हमले में हुए शहीदों को देश के सांसद भूल जायें तो कोई बड़ी बात नहीं होगी। ऐसे में देश के हर नागरिक को चाहिए की वह ऐसे नेताओं को सबक सिखाये और शहीदों को कभी न भूले।
दुनिया में ऐसे कम ही लोग होते है जो अपना जान बचाने वाले को भूल जाते है। इन्ही में हमारे देश के सांसद भी शामिल हो गये है। आज 13 दिसम्बर को संसद में हमले का सात साल पूरा हुआ। हमले में शहीद हुए जवानों को श्रध्दांजलि देने के लिए आठ सौ सांसदों में महज बीस सांसद ही पहुंचे। दुर्भाग्य की बात है कि इनमें देश के गृह मंत्री, विदेश मंत्री भी शामिल है। अगर ये जवान उस दिन आतंकियो से मुकाबला नहीं किये होते तो सांसदो को बंधक बना लिया गया होता और आतंकी अपनी मांग पूरी कराये होते। यह भी कोई बड़ी बात नहीं थी कि सभी सांसदो को मौत के घाट उतार दिया जाता। शायद जैसे-जैसे यह घटना पुरानी होती गई सांसद शहीद जवानों को भुल गये और सिर्फ इस हमले के बाद फांसी की सजा पाने के बाद जेल में बंद अफजल पर राजनीति करना ही याद रह गया है। देश के नेता कितने गद्दार होते जा रहे हैं वह इसी बात से समझा जा सकता है कि संसद के दो कर्मचारी भी शहीद हो गये थे लेकिन उनके परिवार के लोग मदद की दरकार लिये दर-दर की ठोकरे खा रहे है। आज जब श्रध्दांजलि के नाम पर मुठ्ठी भर सांसद मौके पर पहुंचे थे तो वहां भी वे पहुंचे थे। लेकिन वहां उनकी बात मीडिया के अलावा किसी ने नहीं सुनी । पिछले महीने हुए मुम्बई हमले की घटना के बाद भी देश के नेताओं का असली चेहरा हर किसी ने देखा। इसके बाद भी ये अपने को नहीं बदल सके। शायद किसी ने ठीक ही कहा है कि कुत्ते का पुंछ कभी सीधा नहीं होता। हालात देखकर तो लगता है अगर सुभाष चन्द्र बोस जैसे देश भक्त आज अगर होते तो आजाद कहे जाने वाले भारत के इन नेताओं को सबक सिखाने से पीछे नहीं हटते। अभी भी वक्त है ऐसे नेताओं को सबक सिखाया जाये और खुद देश के लिए शहीद होने वाले जबांजो को अपना आदर्श बनाया जाये। देश की युवा शक्ति को आगे आने की जरुरत है और उसे इन नेताओं से भी सतर्क रहने की जरुरत है जो मंचो से भले ही उन्हें एक नई मंजिल की रोशनी दिखाते हैं। लेकिन लोकतंत्र के उत्सवों के दौरान इन युवाओं का किस प्रकार उपयोग होता है। अभी भी वक्त है हम संभल जाये वरना कोई दूसरा जिम्मेदार नहीं होगा।