बुधवार, 24 सितंबर 2008

जरा सोचिये

दो वक्त की रोटी के लिए हर पल मशकत करते हाथ , हाथ में कटोरा लिए बच्चे , कूड़ा कचरे से कुछ आशा ,शराब दुकानों के आसपास खाली बोतल इकठ्ठा करते मासूम । क्या यही महान कहे जाने वाले भारत का भविष्य है । गरीबो के विकास का दावा करने वाले नेताओ - अधिकारियो को यह सब नजर आता है , उसके बाद भी उन्हें फर्क नही पड़ता । इनके दिल में गरीबो के लिए कोई जगह नही रह गया है । इसके खिलाफ लामबंद होने की जरुरत है ,अगर हम चुप बैठे रहे तो ये रोटी के अधिकार के साथ लोकतंत्र को भी छीन लेंगे ।

गुरुवार, 18 सितंबर 2008

वक्त है मंथन का

विधान सभा चुनाव होने वाला है ऐसे में नेताओ के बीच टिकट को लेकर घमासान तेज हो गया है। लोग यहः भी समझते है कि टिकट के लिए क्यो लड़ते है फ़िर भी सही नेता का चुनाव नही कर पाते, यह भी कोई समझ से परे की बात नही है । ऐसे में इस बार गाँव से लेकर राजधानी तक की जनता को देने की जरुरत होगी । शिव खेडा जी के इस वाक्य को याद करने की जरुरत है , हम जिन्हें अपने बचों का गार्जियन नही बनाना चाहते उन्हें देश का गार्जियन बना देते है । तो वक्त है मंथन का ।