शुक्रवार, 19 जून 2009

सिद्धांतो की पत्रकारिता के लिए समाज से नहीं मिल रही ताकत-पद्मश्री अभय छजलानी


जब तक समाज खुद जागृत नहीं होता तब तक न तो राजनीति सकारात्मक और सैद्धांतिक हो सकती है और न ही मीडिया सिद्धांतो की पत्रकारिता कर सकती है। सिद्धांतों की पत्रकारिता के लिए आज भी जगह है लेकिन समाज से ताकत नहीं मिल रही है। मानों समाज निष्क्रिय हो गया है। पद्मश्री से सम्मानित वरिष्ठ पत्रकार अध्यक्ष अभय छजलानी ने उक्त बातें कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित माधवराव सप्रे की १३८वीं जयंती के अवसर पर आयोजित सिद्धांतो की पत्रकारिता विषय पर व्याख्यान देते हुए कही। पद्मश्री श्री छजलानी ने कहा कि समाज व समाचार पत्र दोनों एक दूसरे के पूरक है। आज अखबार धन इकठ्ठा करने के लिए निकाले जा रहे है या फिर पत्रकार इतने दोषी हैं कि समाज में उन्हें कुछ अच्छा नहीं दिखाई देता।समाज को मजबुत बनाए रखना समाचार पत्रों की जिम्मेदारी है। यह कोशिश तभी संभव है जब समाज समाचार पत्र को अपने हाजमा का हिस्सा बनाये। ऐसा नहीं है कि वर्तमान में सिद्धांतों की पत्रकारिता नहीं की जा सकती लेकिन पहले समाज समाचार पत्रों को अपने हाजमें का हिस्सा बनाये। पद्मश्री श्री छजलानी ने कहा कि देश में इमरजेंसी से पहले तक संकल्प की भावना मजबुत थी। देश हित की भावना पवित्र थी लेकिन इमरजेंसी से इसे एक धक्का लगा इसके बाद जो राजनीति शुरु हुई उसने देश को बांट दिया। राजनीति से आम आदमी भ्रमित होने लगा। यही नहीं समाज की शक्ति बनने के बजाय मीडिया खुद जीवित रहने का प्रयास करने लगे है। स्थिति ऐसी बनी कि जिस तरीके से समाज विकास की राह पर चलना शुरु किया मीडिया भी उसी राह पर चलने लगा। समाज में इतने लोग अखबार पढ़ते है यह सोचने की बात है। वर्तमान में मीडियाकर्मी समाज की बेहतरी के लिए काम करना चाहते है। लेकिन बाजारवाद की स्थिति साफ तौर पर सामने आई और सिद्धांतो की पत्रकारिता दूर होती दिखाई देने लगी है। दुनिया में सबसे सस्ता अखबार हिन्दुस्तान में मिलता है भले ही कितना भी महंगाई बढ़ रहा है। ऐसी स्थिति में दायित्वबोध की बात को समझा जा सकता है। समाज जिस हलचल के दौर से गुजर रहा है उसमें वह खुद निर्णय नहीं ले पा रहा है। उन्होंने कहा कि समाज आज किसको अपना हीरो बना रहा है। यह हर रोज दिखाई दे रहा है। वर्तमान में सिद्धांतों की पत्रकारिता की जा सकती है लेकिन ऐसी स्थिति में भरोसा किस पर करें। ऐसा नहीं है कि अखबारों में गंभीर विषयों पर खबर नहीं छपती लेकिन उस पर प्रतिक्रिया क्या होती है। कुछ लोगों के अच्छा करने भर से देश अच्छा नहीं हो सकता। इसके बाद भी समाज व आम आदमी के साथ चलने का जज्बा अखबारों में आज भी है। प्रस्तुतकर्ता- दिलीप जायसवाल

बुधवार, 3 जून 2009


छत्तीसगढ़ के उत्तर में स्थित आदिवासी बाहुल्य सरगुजा जिले की ये तस्वीरें बहुत कुछ कहती हैं, जरा देखिए तस्वीरों में आदिवासियों की जिन्दगी..






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