मंगलवार, 28 जुलाई 2009

मीडिया शिक्षा मूल से भटकाव की ओर

भारत में प्रेस अर्थात मीडिया को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहा जाता है,लेकिन आज देश में स्तंभ के लिए जहां से खूंटे तैयार किये जा रहे हैं। वहां की हालत कैसी है यह एक गंभीर मुद्दा है। दूसरे शिक्षा की तरह इसे भी उसी भीड़ में शामिल करके देखा जा रहा है। जो किसी खतरे से कम नहीं है। मीडिया संस्थान मोटी रकम वसूल कर पत्रकार बनाने की बात करते हैं वहीं युवा रोजगार और मीडिया की बाहरी चका चौंध से प्रेरित होकर पत्रकारिता के संस्थानों में दाखिला ले रहे हैं लेकिन मीडिया की समाज के प्रति क्या जिम्मेदारियां है और मीडिया में चल रहे संक्रामण काल में उन्हें किस तरीके से अपने दायित्वों का निर्वाहन करते हुए एक सजग पत्रकार की भूमिका निभानी है। उन्हें इसकी शिक्षा न देकर प्रबंध की शिक्षा दी जा रही है जो गलत भी नहीं है लेकिन जिस तरीके से पत्रकार तैयार किये जा रहे हैं उसमें वहीं पर पत्रकारिता की आत्मा को मार दिया जा रहा है। यह जरूर है कि बड़े मीडिया समूह इनमें से अधिकतर को अपने साथ रख लेते हैं लेकिन उनका क्या हो रहा है जो भारी भरकम फीस देकर इन संस्थानों में टीवी स्क्रीन पर चमकने का ख्वाब लेकर पहुंचते हैं। मीडिया शिक्षा देश में किशोर अवस्था में है और पिछले कुछ सालों से भी इसका प्रचार प्रसार भी हुआ है। मीडिया शिक्षा के लिए देश में दो सरकारी विश्वविद्यालय हैं। छत्तीसगढ़ राज्य गठन के बाद रायपुर में स्थापित विश्वविद्यालय की स्थापना जिन उदद्ेश्यों के साथ वर्तमान दौर को देखते हुए की गई थी वह मीडिया के संक्रमण काल में पत्रकार तैयार करने के लिए किसी संजीवनी से कम नहीं है। लेकिन अभी भी इस ओर गंभीरता से बहुत कुछ करने की जरूरत है। देश में मीडिया शिक्षा संस्थानों की हालत कैसी है झांक कर देखने की जरूरत है। कई ऐसे संस्थान है जहां क्षेत्रवाद और जातिवाद की बात सुर्खियों के माध्यम से चर्चे में भी आती रही है। आईआईएमसी,बीएचयू और जामिया मिलिया की बात करें तो यहां मध्यम वर्गीय परिवार का हुनरमंद युवा पत्रकारिता की शिक्षा भारी भरकम फीस के कारण आसानी से ग्रहण नहीं कर पाता । ऐसे में इन संस्थानों तक ऐसे युवक युवतियां ही पहुंच पा रहे है जो आर्थिक दृष्टि से रईस परिवारों से तालुकात रखते हैं। हालत ऐसी बन रही है कि प्रोफेशनल होने का चादर ओढकर पत्रकारिता के लिए निकलने वाले इन नवोदित पत्रकारों से समाज की धरातल कोशो दूर रहती है ऐसे में ये आम आदमी की आवाज तो कम ही बन पाते हैं उससे ज्यादा चाटूकारिता कर आगे बढऩे का ख्वाब देखते हैं और इसमें कुछ सफल भी हो जाते हैं। लेकिन एक सच्चाई यह भी है कि ये कम से कम एक पत्रकार नहीं बन पाते । पत्रकारिता की नीति शास्त्र भी कहता है कि पत्रकारिता एक पेशा भर नहीं है बल्कि उसके बहुत ऊपर की एक अवधारणा है। यह एक मिशन है जो सामाजिक न्याय, मानवता ,समरसता ,स्वतंत्रता,सत्य के लिए कटिबद्ध है। समय की मांग व ठोस वास्तविकता ही है कि पत्रकारिता के मूल्यों की रक्षा हर कीमत पर की जानी चाहिए। दुर्भाग्य की बात है कि कई मीडिया शिक्षा संस्थान सिर्फ डिग्रीधारी पत्रकार बनाने की फैक्ट्री से और ज्यादा कुछ भी नहंीं दिखते । वहीं सरकारी संस्थानों की बात करें तो यहां राजनैतिक पहुंच के कारण कोई भी किसी भी पद का मालिक बन बैठता है। उसकी योग्यता और दक्षता को मापने की जरूरत ही नहीं समझी जाती। यहां बताना लाजमी होगा कि इन संस्थानों से निकलने वाले पत्रकर ऐसे भी हैं जिन्हें हिन्दी में ठीक से एक पैरा तक लिखना नहीं आता और न ही कैमरा को ट्राईपोड में रखना आता है। ऐसे में क्या मतलब हुआ,ऐसे पत्रकारिता के सरकारी संस्थानों का। अगर कोई संस्थान खुद को नया बताकर अपने छात्रों को नीव का पत्थर कहकर उन्हें खुश करने की कोशिश करें तो यह कहां तक सहंी है। जबकि उनकी हालत ऊपर वर्णित शब्दों से मेल खाती हो। ऐसे पत्रकार आखिर उस संस्थान का किस तरह से नीव में मजबूत ईंट बन पायेंगे या फिर पत्रकारिता की ईंट मजबूत करेंगे यह भी समझ से परे हैं।बाजारवाद के इस संक्रमणकाल में मीडिया जिन परिस्थितियों से गुजर रहा है और जिस अंधेरी गुफा में जा रहा है कम से कम इस गुफा में जाकर मीडिया डिग्रीधारी टार्च दिखाने का काम कर सकें तो यह बेहतर होगा। नहीं तो यह मीडिया शिक्षा भी सिर्फ नौकरी पाने और इसके गेटपास से और ज्यादा कुछ भी नहीं रह जायेगा। वैसे भी गेटपास मिलने के बाद प्लेटफार्म में खुद को चलना होता है वहां चलने नहीं आया या फिर चलकर दूसरों की तरह आगे बढने की कोशिश होती रही तो वह न तो लोकतंत्र के खूंटे को मजबूत कर पायेगा और न ही खुद मजबूत हो पायेगा। इससे पहले गंभीरता से विचार करने की जरूरत है कि मीडिया शिक्षा संक्रमण से बाहर दुरूस्थ व्यवस्था के साथ आगे बढ़े, परिस्थितियों से मुकाबला करे और पत्रकारिता के मूल को जिंदा रखे। तभी मीडिया शैक्षणिक संस्थानों का दायित्व और मीडिया शिक्षा का उददेश्य पूरा हो पायेगा।

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