समाज में शिक्षकों का सम्मान आदिकाल से चला आ रहा है। अब यह सम्मान औपचारिकता भर रह गया है। बाजार वाद को भी इसके लिए जिम्मेदार माना जा सकता है। इसने मानवीय संवेदनाओ तथा नैतिक मूल्यों पर प्रतिकुल प्रभाव डाला है। शिक्षा व्यवस्था भी बाजार के अधिपत्य में आ चुकी है। ऐसे में शिक्षक भी इसके प्रभाव से नहीं बच सके हैं। मोटी फीस अदा करने वाले छात्रों का भी शिक्षको के प्रति नजरिया बदला है। यही कारण है कि अब न तो शिक्षा की गुणवता पहले जैसे रह गई है और न ही शिक्षको के प्रति आत्म समपर्ण प्रतीत होने वाला सम्मान। वर्तमान की शिक्षा व्यवस्था सिर्फ नौकरी प्राप्त करने की सोच के साथ तैयार की जा रही है। जहां शिक्षको और छात्रों के बीच का रिश्ता बनावटी दिखाई देता है। वैश्विक परिवेश में इसके लिए शिक्षक और छात्र दोनो जिम्मेदार हैं। कभी किसी शिक्षक पर बलात्कार का आरोप लगता है तो कभी स्कूली परिधान के लिए नाप लेने के नाम पर छात्राओं के कपडे उतरवाए जाते हैंैं। वहीं कोई छात्र अपनी शिक्षिका को पे्रम पत्र देकर पे्रम का इजहार करता है। कभी कोई शिक्षक अपनी छात्रा को मोह जाल में फंास कर उससे शादी कर लेता है। यही नहीं कोई छात्र अपने शिक्षक की गोली मारकर हत्या कर देता है। ऐसी घटनांए कभी कभार ही सुनाई देती है।
एक सच यह भी है कि शिक्षको का एक वर्ग सिर्फ नौकरी मात्र करना चाहता है। उसे छात्र हित की फिक्र ही नहीं रहती। ऐसे मे शिक्षको और छात्रों के सम्मानजनक रिश्ता कैसे बने। इस संक्रमण से निकलने दोनो को व्यवहार में चितंन करने की जरूरत है। प्रस्तुत कर्ता दिलीप जायसवाल
शुक्रवार, 4 सितंबर 2009
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