रविवार, 11 अक्तूबर 2009

रोज बिस्तर में बिछती मंजूला

मंजूला कभी स्कूल जाती थी, वह सबसे होनहार लड़की थी। परीक्षा में हमेशा अच्छे नम्बर लाती थी। वह जब कक्षा दसवीं में पढ़ रही थी, तभी उसके पिता की मौत हो गई। अब उसकी मां रमा पर उसे और छोटे चारों भाई-बहन को पढ़ाने-लिखाने की जिम्मेदारी आ गई। मंजूला से यह रहा नहीं गया और उसने पढ़ाई छोड़ दी। वह मां के साथ गांव से मजदूरी करने शहर आने लगी। रायपुर की चैड़ी गली में मां बेटी दूसरे मजदूरों के साथ बैठे रहते, कि कोई उन्हें मजदूरी पर ले जाएगा।
दो वर्ष बाद मंजूला की मां की उम्र भी थकने लगी। वह गांव से रोज मजदूरी के लिए पैदल आने में असमर्थ महसूस करने लगी। गांव में सरपंच के घर वह काम करने लगी, ताकि चूल्हा तो जल सके। अब मंजूला दूसरी लड़कियों के साथ मजदूरी के लिए रायपुर आने लगी, दिनभर हाड़तोड़ मेहनत के बाद भी सिर्फ अस्सी रूपये ही मिलते। ऐसे में राशन और भाई-बहनों की पढ़ाई के लिए पैसा नही के बराबर ही हो पाता था। वह पड़ोसियों से उधार लेकर छोटे भाई-बहनों को पढ़ाने लगी, ऐसा कब तक चलता ? एक दिन उसकी मां भी बीमार पड़ गई। इलाज के लिए घर में एक कौडी भी नहीं थी। घरेलु काम करने पर रमा को सरपंच के घर से मिलने वाले कुछ पैसे भी बंद हो गये। मां के लिए दवा खरीदनी थी। मंजूला के पास पचास रूपये ही थे। वह आज मजदूरी के लिए शहर निकली तो यह सोची कि मां के लिए दवा भी लेकर आयेगी। वह शहर पहंुचते ही पहले दवा दुकान में गई, तो उसके होश उड़ गये। दवा के लिए पांच सौ रूपये चाहिए थे। वह मायूस होकर जल्दी-जल्दी चैड़ी गली पहुंची ताकि उसे आज काम तो मिल सके।
उसे मायूस देखकर एक महिला ने पूछा तो वह उसे अपनी हालत बताई। यह सुनकर महिला ने उसे जो करने के लिए कहा, उससे मंजूला के पैरों तले की जमीन खिसक गई। उसे मां की भी परवा थी। वह महिला की बात पर हामी भर ली। महिला के माध्यम से मंजूला दुनिया के सबसे पुराने धंधे के लिए तैयार थी। रागनी नामक महिला ने उसका पहचान एक आटो वाले से कराया। मंजूला जैसी जवान लड़की को देखकर आटो वाला खुश हो गया, मानो उसे कोई बड़ा मुनाफा मिलने वाला था। आटो वाले ने फौरन मोबाईल से फोन लगाया और रागनी के साथ मंजूला आटो में बैठ गई। आटो वाला शहर के बाहरी छोर में उन्हें लेकर पहुंचा। वहां दो लड़के मोटरसायकल में पहले से उनका इंतजार कर रहे थे। वही पर एक घर भी था। आटो वाले ने लड़कों को मंजूला को दिखाने के बाद मोल-भाव किया। वे लड़के हजार रूपये देने तैयार हो गये।मंजूला की आत्मा मर रही थी। वह खुद को मानो समझा रही थी। वह यह सोच रही थी कि अब लोग उसे मंजूला ही नहीं बल्कि और नामों से जानेगें। वह यह सब सोच रही थी कि आटो वाले ने मंजूला को आटो से उतारा और दोनों लड़के आगे-आगे तथा मंजूला पीछे-पीछे चलने लगी। वे उस घर में पहुंच गये, जहां और भी लड़कियां थी। अब मंजूला भी बिस्तर पर बिछ चुकी थी।युवकों ने हवस मिटाने के बाद आटो वाले को पांच-पांच सौ रूपये के दो नोट दिये और मोटरसायकल चालू कर चल दिये। इधर मंजूला को पांच सौ का एक नोट आटो वाले ने दिया और ढाई-ढाई सौ रूपये रागनी के साथ बांट लिये। मंजूला कभी सपने में भी नहीं सोची रही होगी कि कभी ऐसा होगा।वह दवाई दुकान पहुंची और जल्दी-जल्दी दवा ली, शाम को घर जाने के लिए तैयार थी। उसकी दूसरी सहेलियां भी आज उसे दूसरी नजर से देखने लगे थे। मंजूला जब घर पहुंची तो हाथ में दवा की थैली देखकर रमा खुश हो गई। मंजूला ने मां को खाना बनाकर खिलाया और डाॅक्टर के बताये अनुसार गोलियां और दूसरी दवाईयां मां को खिलाई। मंजूला की छोटी बहन सुनिता दसवीं में पढ़ने लगी थी। सुबह होते ही वह कहने लगी- दीदी परीक्षा फार्म जमा करना है, दो सौ रूपये चाहिए। मंजूला रोज की तरह फिर शहर पहुंची, आटो वाला मंजूला को देखते ही उसके पास पहुंच गया और बोला- चलना है क्या ? मंजूला ने हामी भरी, उसके आंख से आंसू आ गये। वह आटो में आंसू पोछते हुए बैठ गई। आटो वाला सिगरेट जलाते हुए बातो ही बातो में उसे जलाने की कोशिश करना शुरू कर दिया। आज मंजूला के सामने एक ऐसा व्यक्ति था जिसके बारे में वह कल तक भी नहीं सोची थी। साठ साल से भी अधिक उम्र का यह व्यक्ति अपने हवस मिटाने मंजूला का इंतजार कर रहा था। बेटी की उम्र की मंजूला की इज्जत फिर उसी बिस्तर पर तार-तार हो गई। तीन-चार माह गुजर चुके हैं, एक दिन मंजूला पड़ोस में गई थी, जब वह घर आई तो उसकी सांसें थम गई और वह सब कुछ देखकर सहमी सी रह गई। वही बुजुर्ग आज उसके घर में रमा से बातचीत कर रहा था, जो मंजूला की जिस्म से चंद पैसों के बल पर खेल चुका था। जब वह बुजुर्ग उसके घर से चला गया, तब मंजूला अपनी मां से उसके बारे में पूछने लगी। रमा उसे दूसरी बातों में उलझाने की कोशिश की, लेकिन मंजूला ने मां की एक भी नहीं सुनी और वह उस बुजुुर्ग के बारे में जानकर ही रही। रमा ने बताया- उसकी पहली शादी उसी से हुई थी, बाद में दोनों के बीच तलाक हो गया। दोनों ने दूसरी शादी कर ली, कुछ दिन बाद ही उसकी दूसरी पत्नी की मौत हो गई। वह पड़ोस के ही गांव में रहता था, अब शहर में रहने लगा है, पेंशन पर गुजारा करता है और किराया का घर लेकर रहता है। यह सुनते ही मंजूला फूट-फूट कर रोने लगी। अब वह रोज किसी किशोर, किसी जवान, किसी अधेड़ या किसी बूढ़े आदमी का हवस मिटाने बिस्तर पर बिछ जाती है। दिलीप जायसवाल

3 टिप्‍पणियां:

राज भाटिय़ा ने कहा…

बहुत दर्दनाक कहानी है, लेकिन कसुर किस का, जब आमदन कम हो या ना हो तो इतने बच्चे क्यो करते है लोग??? ओर फ़िर कसुर अन्य लोगो का बताते है

Vinashaay sharma ने कहा…

इस गरीबी से बडा़ गुनाह नहीं है,क्या,क्या करना पड़्ता है,इस मजबूरी के कारण ।

M VERMA ने कहा…

मार्मिक