बुधवार, 16 दिसंबर 2009

आनंद का मतलब सेक्स...?

मीडिया पूरी तरह बाजार में शामिल हो गया है और मीडिया संस्थान दुकान बन गए हैं। पैसे के लिए वे कुछ भी बेचने को तैयार है। संस्कृति और सभ्यता के ठेकेदार बनने वाले इस पर अंधे की भूमिका में बैठे हुए है। वे सिर्फ वेलेन्टाइन डे और फे्न्डशीप डे का ही विरोध करते हैं। प्यार करने वालों का मुंह काला कर घुमा सकते हैं। लेकिन नारी देह और स्वस्थ मनोरंजन के नाम पर सेेक्स को सार्वजनिक रुप बेचने वालों के खिलाफ मुहं भी नहीं खोल सकते। जबतक कोई स्वार्थ न हो ।

पिछले कई दिनों से रायपुर के रेडियो मिर्ची पर मोबाईल फोन पर कालर ट्यून बनाने के लिए एक विज्ञापन चल रहा है, विज्ञापन में एक टीवी चैनल पर राशि बताने वाले ज्योतिषी का अभिनय करते हुए कालर ट्यून का मतलव आनंद बताता है और आनंद के तत्वों में सेक्स को इस तरह बताता है मानो इसके बिना उसका विज्ञापन सफल नहीं होगा। हद तो तब हो जाती है जब ज्योतिषी के रोल में विज्ञापन का एक्टर वह सबकुछ बकता है जो उस टेलीविजन के कार्यक्रम की गरिमा को भी प्रभावित करता है।

एफएम रेडियो चैनलों में इस तरह के अश्लील विज्ञापन या दो अर्थी संवाद कोई नई बात नहीं है। इस मामले में रेडियो टीवी चैनलों को भी पार कर रहे हैं। स्वस्थ मनोरंजन के नाम पर जैसी सामग्री परोसी जा रही है उस पर समाज के जागरूक समझे जाने वाले वर्ग ने भी कोई आपत्ति नहीं दिखाई दे रही है, वल्कि वे भी परिवार के साथ यह सब देखने-सुनने के अभ्यस्त हो गए हैं।
समाज में अश्लीलता फैलाने वाले इन माध्यमों के खिलाफ अदालत का दरवाजा भी खटखटाया जा सकता है, लेकिन इतना जहमत कोई नहीं उठाना चाहता। ऐसे में काश कोई सिरफिरा अदालत तक पहुंच जाता।
चुनावों में अगर आचार संहिता का उल्लंघन होता तो नेता फोरन अदालत और दूसरी संस्थाओं तक पहुंचकर कार्यवाही की मांग करने लगते, लेकिन यहां तो किसी का कोई स्वार्थ ही नहीं है। आखिर कब तक समाज सबकुछ देखता-सुनता रहेगा।
दिलीप जायसवाल

2 टिप्‍पणियां:

Rajeysha ने कहा…

आपकी ब्‍लॉग के हेडर पर लगी तस्‍वीर बहुत ही जि‍न्‍दा है।

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

विचारणीय पोस्ट।