मंगलवार, 3 मार्च 2009

चैनलों में काम दिलाने के नाम पर छत्तीसगढ़ में फर्जीवाड़ा, मीडिया की साख को धक्का

पूरे देश सहित छत्तीसगढ़ में पिछले कुछ सालों के भीतर टीवी चैनलों की बाढ़ सी आती हुई दिखाई दे रही है। चैनलों द्वारा जहां राज्य की समस्याओं को सामने रखने की बात की जाती है वहीं छत्तीसगढ़ में ऐसे कुछ चैनल भी हैं जिसकी आड़ में चैनल के स्थानीय प्रमुख फर्जीवाड़ा कर रहे हैं । ये युवक युवतियों को पत्रकार बनने का सपना दिखा कर उनका खूब शोषण कर रहे हैं। पत्रकार बनने के लिए उनसे कुछ चैनल के लोग पैसे भी अवैध तरीके से वसूल कर रहे हैं। वहीं छत्तीसगढ में एक चैनल का रहनुमा बनने वाले ने काम करा कर कई रिर्पोटरों को पैसा भी नहीं दिया।
नये राज्य बनने के बाद से राय में मीडिया की भूमिका भी महत्वपूर्ण हुई है। इसके बाद भी नये टीवी न्यूज चैनल राय में ऐसे लोगों को जिम्मेदारी सौंप रहे हैं जिससे मीडिया कि छवि आम लोगों के सामने ही नहीं बल्कि चैनल में काम करने वाले लोगों के बीच भी खराब हो रही है। अभी एक खबर चर्चे में है कि देहरादून के एक चैनल ने ऐसे व्यक्ति को छत्तीसगढ़ में चैनल का प्रमुख बनाया है जिसे मीडिया का सही तरीके से व्यवहारिक ज्ञान भी नहीं है। वह अब तक कुछ महीनों में ही कई चैनल का ब्यूरो प्रमुख होने का लाबदा ओढ़ चुका है। अब उसके पास से एक चैनल छीन गया है उसके बाद भी उस चैनल के नाम पर कई काम कर रहा है। वर्तमान में जो चैनल उसके पास है, उसमें भी काम करने के लिए रिर्पोटरों तथा दूसरे कर्मियों की भर्ती चैनल की ओर से न करके अपने प्रोडक्शन हाऊस के नाम से किया । इसमें काम कर रहे रिर्पोटरों तथा दूसरे कर्मियों को दो महीने बाद भी वेतन नहीं मिला है। बताया तो यहां तक जाता है कि इसने और भी कई युवकों को रिर्पोटर बनाने के नाम पर उनसे पैसा वसूला और डकार गया। यही नहीं एक और चैनल जिसका नाम बदलने वाला है। वह चैनल जब छत्तीसगढ़ में डेढ़ साल पूर्व आया था, तो उसने भी राज्य के विभिन्न जिलों में रिर्पोटर तथा स्टिंगर बनाने के नाम पर पैसा उगाही की । इसमें एक राजधानी के पत्रकार शामिल थे, जबकि एक उत्तर प्रदेश का रहने वाला व्यक्ति था, जो बाद में चलते बना। दो चैनल ही नहीं बल्कि ऐसे और भी कुछ चैनल हैं जो मीडिया की साख को खराब कर रहे हैं। इन पर स्थानीय पत्रकार संघों का भी कोई नियत्रंण नहीं रह गया है। मीडिया साख तो प्रभावित हो ही रही है इसके अलावा मीडिया में काम करने के लिये पत्रकारिता की पढ़ाई करने वाले छात्रों के बीच भी गलत संदेश जा रहा है। यह तो एक छोटा सा उदाहरण है। चैनल क्या कर रहें हैं और उनमें काम करने वाले लोगों का कितना शोषण हो रहा है इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है। बताया तो यहां तक जाता है कि कई ऐसे लोग हैं जो चैनल की आड़ में दूसरे गैरकानूनी काम भी कर रहे हैं और पुलिस तथा प्रशासन भी इनके खिलाफ शिकायत के बाद भी कोई कार्रवाई करने से हिचकिचाती है।
ऐसे चैनलों को चाहिये कि वे सिर्फ विज्ञापन तथा समाचारों की शर्तो को पूरा करने वाले लोगों के हाथों एजेंसी की तरह जिम्मेदारी न सौंपे नहीं तो इससे प्रतिष्ठित चैनलों की छवि भी प्रभावित होगी। प्रस्तुतकर्ता दिलीप जायसवाल

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