मंगलवार, 24 मार्च 2009

टीआरपी न बढे तो यह खेल भी काम लायक है

ये क्या हो रहा है, बहस जारी रखूंगा, यह लखनऊ की सभ्यता नहीं है, जनता से बात करने फिर आऊंगा, इसके लिए किसको जिम्मेदार ठहराया जाये, तय नहीं कर पा रहा हूं, इस चैनल की ओर से माफी मांगता हूं । यह सब लखनऊ में स्टार न्यूज द्वारा आयोजित कौन बनेगा प्रधानमंत्री कार्यक्रम के तहत कहिये नेता जी लाईव प्रसारण के दौरान दीपक चौरसिया के जुबान से सुनने को मिला। आखिर ऐसी स्थिति क्यों बन जाती है और अगर ऐसी स्थिति बनने की संभावना रहती है तो कार्यक्रम ही क्यों आयोजित किये जाते हैं। लखनऊ ही नहीं रायपुर में भी विधानसभा चुनाव के दौरान कहिये नेता जी के कार्यक्रम में कुर्सी फेंके गये और जमकर हंगामा हुआ था। मीडिया के कार्यक्रमों में ऐसी स्थिति क्यों बनती है शायद इस पर मीडिया भी विचार नहीं कर रही है, नहीं तो बार-बार ऐसा नहीं होता। लखनऊ में जिस तरीके से यह कार्यक्रम शुरू हुआ और वरूण गांधी को लेकर जैसे ही चर्चा शुरू हुई, परिस्थितियां बदलती हुई दिखाई दी। लोग कुर्सी छोड़ खडे हो गये और हंगामा करते हुये कुर्सियों को फेका गया। यह सब देख रायपुर में जिस तरीके से दीपक चौरसिया जी को अपील करनी पडी थी और जितना मशक्कत यहां करना पड़ा था शायद लखनऊ में नहीं करना पड़ा। दीपक चौरसिया शुरू में यह कहते टीवी पर सुने गये कि ये सब क्या हो रहा है,ये लखनऊ की सभ्यता नहीं है, मैं बहस जारी रखूंगा, जनता से बात करने अप्रैल में फिर आऊंगा,इसके साथ ही ब्रेक शुरू हो जाती है और जब श्री चौरसिया दुबारा लौटते हैं तो कहते है कि इस घटना के लिए किसको जिम्मेदार ठहराया जाये यह तय नहीं कर पा रहे हैं, इस चैनल की ओर से अगर कोई अशलील या सम्मान को ठेस पहुंचाने वाली कोई बात प्रसारित हुई हो तो माफी मांगता हूं । कार्यक्रम को चैनल ने यही पर स्थगित कर दिया लेकिन यह सब घण्टेभर बाद ही दिखाना शुरू कर दिया गया। सब कुछ देखकर तो यही लगने लगा है कि अब ऐसी घटना भी चैनल की टीआरपी को बढ़ाने के लिए काम करती है और शायद चैनल भी यही चाहता है कि भले ही कुछ भी हो, उसकी टीआरपी बढे। चुनावों के कार्यक्रमों में चैनल द्वारा इस तरह के कार्यक्रम प्रसारित किये जाते है जिसमें पुलिस की सुरक्षा व्यवस्था भी होती है। लेकिन जिस तरह से कार्यक्रमों में आम मतदाताओं की उपस्थिति बताई जाती है, वैसा दिखाई नहीं देता। कार्यक्रम में नेताओं के समर्थक माौद होते है और जिस नेता का पलढ़ा कार्यक्रम मे दौरान कमजोर दिखाई देता है वे उठ बैठते है, और हंगामा की स्थिति बनाते हैं। पुलिस भी इन पर राजनैतिक संरक्षण के कारण कोई कार्यवाही नहीं कर पाती। यह सब चैनल और कार्यक्रम के एंकर को भी मालूम होता है, उसके बाद भी कार्यक्रम में ऐसे मुददे उठाये जाते है जिससे उग्र होने का बहाना मिल जाता है । लखनऊ में जो कुछ हुआ वह कोई अप्रत्याशित घटना नहीं थी। बल्कि ऐसी घटना का प्रत्यक्षदर्शी रहने के बाद टीवी पर देख रहा था। खास बात तो यह है कि मीडिया हमेशा किसी घटना से सीख लेने की बात करती है लेकिन जब ऐसी घटना का दोहराव हो तो मीडिया की बात खुद को संतुष्ट करने के अलावा यादा कुछ प्रतीत नहीं होती। वैसे भी कौन बनेगा प्रधानमंत्री में और नेता जी कहिन कार्यक्रम में ऐसा कुछ आम आदमी को प्राप्त नहीं होता जिससे वह सही नेता का चयन कर सके। ऐसे कार्यक्रमों से सिर्फ टीआरपी बढ़ाया जा सकता है और टीआरपी भी क्यों ने बढे ज़ब लाईव प्रसारण में कुर्सियां फें की जाने लगे और लाठियां चल जाये । यही नहीं एंकर को चींखना और चिल्लाना पडे। वैसे तो आज कल हर चैनल पर एंकर चिखते ही रहते है लेकिन उससे भी टीआरपी न बढे तो यह खेल भी काम लायक है । प्रस्तुतकर्ता दिलीप् जाय‌स‌वाल‌