गुरुवार, 11 फ़रवरी 2010

मीडिया पर भड़के हैं नागा बाबा


राजिम महाकुंभ मंे अलग-अलग अखाड़ों से पहुंचे नागाबाबा मीडिया पर इन दिनों खफा हैं। वे मीडिया कर्मियों के किसी भी प्रकार से फोटो लेने या वीडियों बनाने केे खिलाफ हैं। कल कुछ मीडिया कर्मियों द्वारा राजिम में शोभायात्रा के दौरान फोटो लेने पर उनके विरोध का सामना करना पड़ा। नागा बाबाओं का कहना है कि मीडिया में उनके बारे में गलत जानकारी देते हुए उनपर लोगों से भिक्षा के लिए जबरदस्ती करने का आरोप लगाया जा रहा है, वहीं उनकी तस्वीरों का छपने के बाद मजाक उड़ाया जा रहा है।

राजिम महाकुंभ में हिमाचल प्रदेश, अमरकंटक, बनारस सहित दूसरे शहरों से सैकड़ों की संख्या में नागाबाबा पहुंचे हुए हैं। यहां सबसे ज्यादा पंचदश नाम जूना अखाड़ा, बड़ा हनुमान घाट से नाग बाबाओं की टोली पहुंची हुई है। हालांकि इस साल यहां नागा बाबाओं की संख्या कम है। कल जब शोभायात्रा के दौरान कुछ टीवी और अखबारों के कैमरा मैंन उनका तस्वीर ले रहे थे तो उनके विरोध के कारण कैमरामैंनों को इधर-उधर भागना पड़ा वहीं पुलिस भी मीडिया कर्मियों को नागाबाबाओ की तस्वीर और वीडियों तैयार नहीं करने की समझाईस देती रही। मीडिया में आए खबरों के बाद बाबाओ का कहना है कि इससे उनका अपमान हुआ है। ऐसा कभी नहीं हुआ था। सरकार उनकी सुरक्षा की जिम्मेदारी लेती है तो उनका अपमान न हो इसकी भी जिम्मेदारी ले। मीडिया में ऐसी खबर आने के बाद समाज में उनके प्रति गलत संदेश जाता है।

इलाहाबाद कुंभ में नागाओं को देखकर खुद बन गया नागा

राजिम कुंभ में हिमाचल प्रदेश के खीरगंगा से पहुंचे नागा बाबा अमृतगिरी ने इस संवाददाता से चर्चा करते हुए बताया कि उसने नागा बाबा बनने के लिए बचपन में नहीं सोचा था, लेकिन जब वह इलाहाबाद कुंभ में गया था तब वहां नागाबाबाओं को लोग भगवान के समान पूजते थे और उनके चरणों के नीचे की मिट्टी को उठाकर अपने पास रखते थे। यह सब देखकर उसने भी नागा बाबा बनने की ठानी और वह इसके लिए खीरगंगा चला गया।

अमृतगिरी नागा साधुओं के बारे मे बताते हुए कहते हैं कि खीरगंगा में भगवान कार्तिक स्वामी ने तपश्या किया था यहां पार्वती नामक नदी भी बहती है। उन्हांने बताया कि वे छह माह बारिश के समय पहाड के उपर बर्फ पर रहते हैं और साल के छह माह वे नीचे भिक्षा मांगकर जीते हैं। पूरे देशभर में सात सन्यासी अखाड़े और चार बैरागी अखाड़े हैं इनमें सात शिवदल और चार अखाड़े रामदल के होते हैं। इनमें भी नागा और उदासी दो अखाड़े होते हैं। नागा बाबा बनने के लिए सबसे पहले गुरु का शिष्य बनना पड़ता है। शिष्य बारह सालों तक अपने गुरु की सेवा करता है उसके बाद उसे नागा बाबा होने की मान्यता मिलती है। इस बीच कई संस्कार संपन्न कराए जाते हैं।
हिमाचल प्रदेश के नागा बाबाओं का कहना है कि नेपाल में उन्हें दो बार जाने का मौका मिलता है। एक तो महाशिवरात्रि के समय और दूसरा भगवान राम के जन्मोत्सव के दौरान। यहां इनके पूजा अर्चना में आनेवाली लागत और रहने खाने के अलावा सुरक्षा की पुख्ता व्यवस्था की जाती है। यह व्यवस्था वहां की कार्यक्रम आयोजित करने वाली कमेटी करती है। जिसे नेपाली में गुटी कहा जाता है। दिलीप जायसवाल

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