रविवार, 14 फ़रवरी 2010

बिना हारे अब कदम बढ़ाइए





जाता है कि जब किसी की नियत में खोट हो तो उससे सही काम करने की उम्मीद करना खुद को धोखा देने के समान होता है। ऐसी स्थिति आज भारतीय लोकतंत्र के नौकरशाही तबके में भी घर कर चुका है। नौकरशाहों की नियत आम जनता और देश के प्रति कैसी है, यह समय-समय पर दिखता रहा है। राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना के साथ नियत के बेईमान नौकरशाहों ने कुछ ऐसा ही किया है। भले ही इस योजना के क्रियान्वयन की तारीफ में तमगे क्यों न मिलें।

छत्तीसगढ़ के कई ऐसे क्षेत्र हैं, जहां जमीनी स्तर पर काम करने वाले सरकारी नुमाइंदे अपने़े अफसरों के कारण भ्रष्टाचार करने पर मजबूर हो जाते हैं। अभी कुछ दिन पहले राज्य के उत्तर में स्थित सरगुजा के एक मित्र से कई सालों बाद मुलाकत हुई। वह बताया कि इस समय राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना के तहत ग्राम पंचायत में रोजगार सहायक है। वह पंचायत में ईमानदारी के साथ काम करना चाहता है, लेकिन यह आसान नहीं है। वह बताते हुए कहने लगा- जब तक इंजीनियर को कमीशन नहीं मिलेगा, वह काम का मूल्यांकन नहीं करेगा। बाबू फाईल आगे नहीं बढ़ाएगे और अफसर फाईल में साईन नहीं करेगा, ऐसी स्थिति में मजदूरी नहीं मिलने पर कोपभाजन का शिकार उन्हें बनना पड़ता है।

ऐसी स्थिति में मजबूरी यह होती है कि वे फर्जी मस्टर रोल तैयार कर, जो मजदूर सप्ताह भर काम किया है उसे दो सप्ताह काम करना बताएं और जब पोस्ट आफिस से मजदूरों को मजदूरी मिलता रहे, तब पोस्ट मास्टर को भी भ्रष्टाचार का रस बताकर मजदूर से दो सप्ताह की मजदूरी के लिए हस्ताक्षर कराएं। इसके बाद उसे एक सप्ताह का पैसा देकर घर भेज दें।


यह सब न कर अगर जिला या राज्य स्तर के अधिकारियों से इसकी शिकायत की जाए तो कार्यवाही कब होगी और क्या होगा कोई नहीं जानता। कई बार तो ऐसा होता है जब शिकायत करने वाला कर्मचारी ही अपनी नौकरी गंवा बैठता है। सरकार ने रोजगार गारंटी कानून को यह सोचकर बनाया कि गांवों से बेरोजगारी कम होगी और गांव का विकास होगा। इसे भ्रष्टाचार से बचाने के लिए भी सख्त नियम बनाए गए। मजदूरों को बैंक या पोस्ट आफिस से मजदूरी भुगतान करने की व्यवस्था की गई, लेकिन नियत के हराम खोरों के सामने यह योजना भी भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गई।

काम के बदले अनाज योजना का उल्लेख करना भी लाजमी होगा, जिसे सरकार ने खाद्यान सुरक्षा के मद्देनजर शुरू किया था, इस योजना का क्या हश्र हुआ इसका मैं खुद प्रत्यक्षदर्शी रहा हूं और इससे क्रियान्वयन में पंचायत प्रतिनिधियों को क्या-क्या करना पड़ा वह भी अपनी आंखों से देखा हूं। जब एक सरपंच ने शिलान्यास के पत्थर पर इसका भी उल्लेख कर दिया कि कमीशन में उसने किस अफसर को कितना रुपया दिया है।


बात उन दिनों की है जब मैं सरगुजा जिला मुख्यालय में संवाददाता के रूप में काम करता था। ऐसा कोई दिन नहीं बीतता था, जिस दिन गांवों से मजदूर मजदूरी नहीं मिलने की शिकायत लेकर कलेक्टर के दफ्तर में तो कभी अखबारों के दफ्तर में नहीं पहुंचते थे। मजदूरों को दिया जाने वाला राशन बाजार में बिकता रहा और मजदूर पसीने की कमाई के लिए चिल्लाते रहे, लेकिन कई गांवों में सालों बीत जाने के बाद भी इस योजना की मजदूरी आज भी मजदूरों को नहीं मिली है। चाहे तो सरकार गांवों में इसका सर्वे करा ले। वहीं कई स्थानों पर तो रातों-रात मशीनों से तालाब तैयार हो गए और कागजों में मजदूरों को भुगतान भी हो गया। कई जगहों पर तो बड़े-बड़े डेम भी बन गए।

ये तो उदाहरण मात्र हैं। दुर्भाग्य की बात है कि दोषी अफसरों के खिलाफ कार्यवाही भी नहीं होती। वल्कि ऐसी राजनीति चल रही है कि ऐसे अफसर और दूसरे लोग पुरुस्कृत होते हैं।


अब जब नवाअंजोर योजना बंद हेाने वाली है इस योजना के तहत गांवों में गरीबों की जिंदगी में कितना अंजोर आया, यह एक महत्वपूर्ण सवाल है। खासकर इस योजना के तहत महिलाओं को स्व-सहायता समूहों के माध्यम से आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में काम करना था, ताकि वे आत्मनिर्भर हो सकें। राज्य के सोलह विकासखंडों में नवाअंजोर योजना का संचालन किया गया और करोड़ों रुपए खर्च किया गया, लेकिन सच्चाई तो यह है कि सैकड़ों स्व-सहायता समूह कागजों में ही चले और पैसा अफसरों की जेब में पहुंचा। इसका उदाहरण देखना हो तो सरगुजा के ही वाड्रफनगर क्षेत्र के गांवों में जाकर देखा जा सकता है, जहां दशकों पहले भूख से मौत की खबर पर प्रधानमंत्री तक पहुंच गए थे, आज स्थिति तो ऐसी नहीं, लेकिन कोई खास भी नहीं है।

ऐसी स्थिति दूसरे दिन ही सुधर जाए, लेकिन जब तक मंत्री विधायक नहीं सुधरेंगे तब तक यह सोचना कि गरीब मजदूरों का हक उन्हें पूरी तरह मिलेगा और उनका विकास होगा, यह एक झूठे सपने के समान है। इसे भूलकर आम आदमी को हर पल बिना हारे इस तंत्र से लड़ने की जरूरत है, तो शुरू हो जाइए और कदम बढ़ाइए।


दिलीप जायसवाल

2 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

जब तक मंत्री विधायक नहीं सुधरेंगे-ये भला क्या सुधरेंगे.

विचारणीय आलेख.

Gappe bazi ने कहा…

bhrast prasasan or sarkar ko apne apme sudhar karne ki jarurat hai.warna yah silsila yu hi jari rahega.9098174169