शुक्रवार, 28 अगस्त 2009

36गढ़ में सम्पूर्ण स्वच्छता 36 फीसदी पर अटका

छत्तीसगढ़ के बीस हजार गांवों में सम्पूर्ण स्वच्छता अभियान के तहत तीन सालों के भीतर पूरी तरीके से खुले शौच को बंद करने के लिए काम किया जा रहा है। वर्तमान में इस पर 36 फीसदी ही काम हो सका है, जबकि राष्ट्रीय स्तर पर 48 फीसदी तक काम हो चुका है। सरगुजा को पूरी तरीके से इस कार्य कार्यक्रम के तहत सरकारी रिकार्डों में निर्मल बनाया जा चुका है।
भारत सरकार ने ग्रामीण स्वच्छता को ध्यान में रखते हुए सन् 1986 में राष्ट्रीय ग्रामीण स्वच्छता कार्यक्रम की शुरूआत की और यह कार्यक्रम अपने उद्देश्यों में पूरी तरह से सफल नहीं हो सका। इस कार्यक्रम के तहत शौचालय निर्माण को प्राथमिकता दिया गया और अनुदान पर ज्यादा भरोसा किया गया, साथ ही स्कूलों की स्वच्छता पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया गया। इस पर सन् 1996-97 पर जब भारतीय जनसंचार संस्थान द्वारा सर्वे किया गया तो यह बात छन कर सामने आई कि 55 प्रतिशत लोगों ने स्वप्रेरणा से शौचालय बनवाये, जबकि दो प्रतिशत लोगों ने ही अनुदान के तहत अपने घरों में शौचालय बनवाया, वहीं इतने फीसदी लोगों ने सुविधा व गोपनीयता के आधार पर शौचालय बनवाया। इस कार्यक्रम की बदहाली को देखते हुए सरकार ने सन् 1999 में सम्पूर्ण स्वच्छता अभियान की शुरूआत की और यह लक्ष्य रखा गया है कि सन् 2012 तक सभी घरों में शौचालय बनवा लिया जायेगा। साथ ही लोगों को इसके उपयोग के प्रति भी जागरूक कर लिया जायेगा।
छत्तीसगढ़ में इस कार्यक्रम की स्थिति पर नजर डालें तो गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले 42.55 प्रतिशत लोगों ने ही शौचालय बनवाया है, वहीं राष्ट्रीय स्तर पर इसका प्रतिशत 55.14 है। एपीएल परिवारों की बात करें तो राष्ट्रीय स्तर पर 43.2 प्रतिशत परिवारों में शौचालय है, जबकि राज्य में इसकी स्थिति 31.82 प्रतिशत है। स्कूल में बने शौचालयों में राज्य आगे है। राष्ट्रीय स्तर पर स्कूलों में बने शौचालयों का प्रतिशत 75.29 है, वहीं छत्तीसगढ़ में 90.47 प्रतिशत है। आंगनबाड़ियों में राष्ट्रीय स्तर पर बनें शौचालयों का प्रतिशत 64.3 है, राज्य में यह प्रतिशत 73.8 है।
सम्पूर्ण स्वच्छता अभियान के तहत ग्राम पंचायत प्रतिनिधियों को भी अपने घरों में शौचालय बनवाने की अनिवार्यता है, लेकिन अभी भी कई पंचायत प्रतिनिधियों ने इसका पालन नहीं किया है। हालांकि कई जिलों में ऐसे पंचायत पदाधिकारियों के खिलाफ कार्यवाही भी हुई है।
आंगनबाड़ियों तथा स्कूलों में दिसम्बर 2009 तक पूरी तरह शौचालय निर्माण के साथ उसके उपयोग का लक्ष्य रखा गया है। शासकीय स्कूलों को बीस-बीस हजार रूपये लड़के तथा लड़कियों के लिए शौचालय बनाने राशि आंबटित की जाती है। इसमें 14 हजार केंद्र सरकार तथा छह हजार रूपये राज्य सरकार 12वें वित्त आयोग से प्रदान करती हैं। आंगनबाड़ियों में बाल मित्र शौचालय के लिए पांच हजार रूपये खर्च किया जाता है, जिसमें राज्य सरकार डेढ़ हजार रूपये देती है और शेष 3500 रूपये केंद्र सरकार का होता है। सामुदायिक शौचालय निर्माण के लिए दो लाख रूपये का प्रावधान है, जिसमें 60 प्रतिशत केंद्र सरकार तथा 30 प्रतिशत राज्य सरकार व 10 फीसदी समुदाय का हिस्सेदारी होती है।
प्रतिवर्ष विश्व भर में जल जनित रोगों से 34 लाख लोगों की मौत हो जाती है। वहीं 25 लाख लोग डायरिया से मर जाते है और भारत में हर साल छह लाख लोगों की मौत हो रही है। इसके लिए खुले में शौच बड़ी समस्या हैं। भारत में 65 प्रतिशत लोग आज भी खुले में शौच कर रहे हैं। हर रोज दो लाख मीट्रिक टन मानव मल खुले में होता है, जो डायरिया, पीलिया, टायफाईड, पोलियो, मलेरिया सहित दूसरी बीमारियों का जड़ बनता है।
छत्तीसगढ़ में कुल 402 पंचायत को निर्मल ग्राम पंचायत का पुरस्कार मिल चुका है। सबसे पहले सन् 2005-06 में राजनांदगांव के 12 पंचायतों को और 2006-07 में राजनांदगांव के 16, रायपुर के 10, बिलासपुर के 22 तथा कोरबा के 15 व बस्तर के 27 पंचायतों को यह पुरस्कार मिला, जबकि सन् 2007-08 में सरगुजा के 112, राजनांदगांव के 12, रायपुर के 2, बिलासपुर के 36, कोरबा के 46, धमतरी के 17, महासमंुद के 7, कोरिया के 5, जशपुर के 2, दुर्ग के 1, कांकेर के 7, दंतेवाड़ा के 1 एवं रायगढ़ के 6 तथा बस्तर के 44 पंचायतों को निर्मल ग्राम पंचायत के पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है। इसके तहत प्रोत्साहन राशि के अलावा प्रशस्ति पत्र एवं स्मृति चिन्ह भेंट किया जाता है। यह पुरस्कार 50 हजार से 50 लाख तक है, जो पंचायत, ब्लाक और जिला पंचायत की जनसंख्या पर निर्भर करता है।
लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग के संचार एवं क्षमता विकास इकाई संचालक यासमिन सिंह ने बताया कि शौचालय तो बन जा रहे हैं, लेकिन जागरूकता एक बहुत बड़ी चुनौती है। लोगों का व्यवहार परिवर्तन के लिए विभागीय स्तर पर होने वाला काम ही पर्याप्त नहीं है।
संचार एवं क्षमता विकास इकाई के वकील अहमद ने बताया कि सरगुजा जिला पूरी तरीके से इस अभियान के तहत स्वच्छ हो गया है। एक सवाल पर उन्होंने कहा कि शौचालयों की देख-रेख की जिम्मेदारी परिवारों की बनती है, वहीं स्कूलों तथा दूसरे स्थानों पर बने शौचालयों की देख-रेख कार्यक्रम के तहत चुनौती है। प्रस्तुतकर्ता-दिलीप जायसवाल

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