गुरुवार, 13 अगस्त 2009

उन्हें तो पत्रकारिता की डिग्री चाहिए

पत्रकारिता की, डिग्री और पत्रकार होने का रौब हर रोज दिखाई देता है। आज विष्वविद्यालय में दाखिला लेने एक युवती पहुंची। वह षैक्षणिक षुल्क जमा करने के लिए कागजी कार्यवाही कर रही थी, लेकिन आफिस का समय खत्म हो गया था, इस पर बाबू ने दूसरे दिन आने को कहा। यह सुन कर युवती फट परी और कहने लगी वह कुलपति का साक्षात्कार ले चुकी है, वह क्या उनसे जाकर मिले? इस पर बाबू खामोष रहा। उसने फिर कहा उसके पास टाईम नहीं है, वह तीन साल से मीडिया में काम कर रही है, वह फीस जमा करने कल नहीं आ पायेगी। उसे तो सिर्फ डिग्री चाहिए। जी हां, यह एक अकेली यवुती नहीं जिसकी जुबान से इस तरह सुनने को मिलते हैं। बल्कि की विष्वविद्यालय में कई ऐसे छात्र है जो सिर्फ यही कहते हैं कि उन्हें डिग्री लेनी है। ऐसा वे भी कहते हैं जिनका मीडिया से कोई संबंध नहीं है और न ही कोई लक्ष्य है। यह सब बताने का उद्देष्य सिर्फ इतना है कि पत्रकारिता के लिए डिग्री बहुत कुछ नहीं होता, पर छात्रों में ऐसा अहंकार किसी बड़ी भुल से कम नहीं है क्योकि इंसान जिंदगी भर सिखता रहता है और ऐसा नहीं है कि मीडिया में काम करने के बाद उसे पत्रकारिता का पूरा ज्ञान हो जाता हो। षिक्षकों से कुछ न कुछ सिखने को जरूर मिलता है। इस तरह षिक्षा के महत्व को सिर्फ डिग्रियों तक सीमित मानने वालों को सोचने की जरूरत है कि मीडिया पर बाजारवाद के अलावा कई गंभीर आरोप क्यों लगते हैं। इस पर मंथन करते हुए पत्रकारिता की षिक्षा को समझने की जरूरत है। यह बात अलग है कि मीडिया षिक्षा की गुणवत्ता पर भी कई सवाल लगते हैं। इन सवालों और मीडिया षिक्षा की अव्यवस्था के बीच मिल रही षिक्षा भी डिग्री भर तक सोचने वालों को एक नया रास्ता दिखा कर षिक्षित मीडियाकर्मी अर्थात समाज में कार्य करते हुए सफल मीडियाकर्मी की भूमिका के लिए तैयार कर रहा है। उन्हें इस बात को मन से निकाल देनी चाहिए कि मीडिया की डिग्री लेनी है, काम तो उन्हें आता ही है। प्रस्तुतकर्ता-दिलीप जायसवाल

1 टिप्पणी:

Arshia Ali ने कहा…

जन्माष्टमी की हार्दिक बधाई.
( Treasurer-S. T. )