सोमवार, 3 अगस्त 2009

दस करोड़ पेड़ों की कटाई के बाद लगेगा पावर प्लांट

छत्तीसगढ़ में विनाश के नाम पर विकास की तैयारी की जा रही है। राज्य के उत्तर में स्थित सरगुजा तथा कोरबा में दस करोड़ पेड़ों की कटाई कर पांच कोयला खदानों तथा दो पावर प्लांट की स्थापना का काम शुरु हो गया है। इससे २९ हजार परिवार विस्थापित हो रहे हैं। वहीं हजारों हेक्टेयर कृषि भूमि तबाह हो रही है। इफको द्वारा खोले जा रहे पावर प्लांट का ग्रामीणों द्वारा पुरजोर विरोध किया जा रहा है और यहां सिंगुर जैसे हालात बने तो कोई बड़ी बात नहीं होगी। राज्य सरकार द्वारा सरगुजा के प्रेमनगर में इफको पावर प्लांट तथा सरगुजा एवं कोरबा के बीच अल्ट्रा मेगा पावर प्लांट की स्थापना की जा रही है, इससे १०३ गांव बुरी तरत से प्रभावित हो रहे हैं। इन पावर प्लांटो को चलाने के लिए ५ कोयला खदान भी खोले जायेंगे। पहला कोयला खदान सरगुजा में तारा में होगा जिसे इफको द्वारा संचालित किया जायेगा। जबकि उदयपुर के परसा में गुजरात के अदानी एण्ड अदानी गु्रप, केते में राजस्थान सरकार द्वारा केदमा के पास नकिया में स्टरलाईट एवं कोरबा के मोगरा में पतुरिया खदान इलेक्ट्रीसिटी बोर्ड छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा चलाया जायेगा। इसी तरह इफको पावर प्लांट प्रेमनगर में तथा अल्ट्रा मेगा पावर प्लांट उदयपुर में लगाया जाना है। अल्ट्रा मेगा पावर प्लांट के लिए साल भर पूर्व सरकार ने ए.एम.यू. किया है जिसके तहत १५ सौ हेक्टेयर जमीन का अधिग्रहण किया जा रहा है। वहीं सन् २००५ से इफको द्वारा पावर प्लांट शुरु किया गया है जिसके लिए ७५० हेक्टेयर जमीन अधिग्रहित किये जाने का काम चल रहा है। खास बात यह है कि इफको पावर प्लांट तथा तारा कोल ब्लाक की स्थापना से १ करोड़ ५३ लाख १९ हजार से अधिक पेड़ कटेंगे। इतने पेड़ ३३०० हेक्टेयर जमीन में हैं। इस तरह एक बड़ा क्षेत्र का जंगल साफ तो होगा ही साथ ही १५० से अधिक जड़ी-बुटियों की प्रजातियां नष्ट होंगी वहीं कई वन्य जीवों का अस्तित्व भी खतरे में आ जायेगा। इसके अलावा प्रदूषण की जो समस्या होगी उसकी भयावहता को लेकर समझा जा सकता है। दोनों पावर प्लांटो की स्थापना को लेकर सरकार तथा निजी कंपनियां पूरी ताकत झोंक दी हंैं। क्योंकि ग्रामीणों तथा समाजसेवी संगठनों द्वारा इसका विरोध किया जा रहा है। एक एनजीओ के पदाधिकारी मेंहंदीलाल का कहना है कि प्रेमनगर क्षेत्र में खुलने जा रहे इफको पावर प्लांट की स्थाना से ५ गांव पूरी तरीके से उजड़ रहे हैं और इन ग्रामीणों के साथ मिलकर वे इसका विरोध कर रहे हैं। क्योंकि प्रशासन द्वारा नियम कानून को ताक पर रखकर ग्राम सभा का प्रस्ताव पास करवाया जा रहा है। विरोध को देखते हुए पुलिस बल की मौजूदगी में दबाव डालकर सरपंचो से हस्ताक्षर कराये जा रहे हैं। जबकि नियमत: ग्राम सभा में प्रस्ताव विस्थापन की प्रक्रिया पूरी होने के साल भर बाद होना चाहिए। पावर प्लांट की स्थापना से करोड़ों की संख्या में पेड़ों की कटाई तथा हजारों हेक्टेयर कृषि भूमि के नष्ट होने से आक्रोशित ग्रामीणों ने दो वर्ष पूर्व सिर मुंडा कर विरोध प्रदर्शन किया था । वहीं महिलाओं ने रक्षासूत्र बांधकर पेड़ों की सुरक्षा की सौगंध ली थी। इसी से समझा जा सकता है कि ग्रामीण जल,जंगल और जमीन की सुरक्षा को लेकर कितना चिंतित हैं। इफको पावर प्लांट की स्थापना के लिए गांव पहुंचने वाले कर्मचारियों के साथ ग्रामीणों की झड़प हो रही है। इसी विरोध के परिणामस्वरूप २००९ तक बनकर तैयार होने वाला इफको का पावर प्लांट का ५० फीसदी काम भी पूरा नहीं हो पाया है। लोगों ने पेड़ों की कटाई को रोक कर रखा है। यहां बताना लाजमी होगा कि सरगुजा वनों से पूरी तरह से आच्छादित है जिससे यहां की हालत प्रदूषण की दृष्टि से काफी अच्छी है। वहीं दूसरी तरफ कोरबा की बात करें तो यहां लगे पावर प्लांटो के कारण प्रदूषण इतना बढ़ गया है कि घरों के छतों पर कार्बन की परत जम गई है साथ ही कई सांस की बीमारियां फैल रही हैं। प्रेमनगर के स्थानीय पत्रकार आलोक कहते हैं कि विकास होना चाहिए लेकिन जिस तरीके से पूरा दृश्य उभरकर सामने आ रहा है वह काफी खतरनाक है। सरकार को अगर प्लांट की स्थापना करनी है तो उसे जंगल तथा कृषि भूमि को छोड़कर बंजर भूमि की ओर ध्यान देना चाहिए। उनका मानना है कि विस्थापन से नाम मात्र के लिए और वह भी कागजों में होता है। इफको प्लांट से प्रभावित हो रहे सलका गांव के प्रीतराम का कहना है कि सरकार उनकी जमीन ले रही है लेकिन वे खेती कहां करेंगे। प्रीतराम के चार लड़के है ऐसे में उन्होंने सोचा था कि सभी को एक-एक हेक्टेयर जमीन बांट देते और सभी खेती करते। प्रीत कहते है कि जमीन उनके दादा-परदादा के जमाने की है, जमीन ने उनकी कई पीढिय़ों को पाला है वे किसी भी सूरत में अपनी जमीन नहीं देने वाले। पैसा तो आता-जाता रहता है। वे अपनी जमीन के लिए जान भी देने को तैयार हैं। सरगुजा में एस.ई.सी.एल. भी है। इससे प्रभावित लोगों की हालत आज बदत्तर है उन्हें विस्थापन के तहत कई दशक बीत जाने के बाद भी न तो ठीक से पीने के लिए पानी मिल पा रहा है और न ही दूसरी बुनियादी सुविधाएं। पड़ोस की ऐसी हालत को देखकर भला लोगों को विस्थापन की चमक-दमक में कैसे यकिन होगा। यहां बताना लाजमी होगा कि छत्तीसगढ़ का शिमला कहे जाने वाले मैनपाट की हालत बालको के बॉक्साईड खदान के कारण बदहाल हो गई हैं। यहां भी अवैध तरीके से बॉक्साईड उत्खनन से हजारों की संख्या में पेड़ काटे जा चुके हैं। इससे यहां का प्राकृतिक सौंदर्य पर भी ग्रहण लग गया है और स्थानीय लोगों के विकास की बात तो दूर वे बदहाल की जिंदगी जीने को मजबूर हो गये हैं। इस तरह देखा जाये तो प्रदूषण की चपेट से दूर सरगुजा में विनाश के नाम पर जिस तरीके से विकास की तैयारी की जा रही है वह किसी खतरे से कम नहीं है। वहीं सरकार भी धरातल को देखे बीना पावर प्लांट तथा कोयला खदानों की स्थापना के लिए कवायद कर रही है। सरकारी कवायद के साथ ग्रामीणों तथा समाजसेवी संगठनों का विरोध भी चल रहा है। खास बात तो यह है कि यह सब होते हुए भी राज्य के कुछ बड़े पूंजीपति तथा उद्योग घरानों ने सरगुजा में जमीन भी खरीद लिया है ताकि यहां पावर प्लांट तथा कोयला खदानों की स्थापना हो तो उन्हें असानी से लाभ मिल सके । प्रस्तुत कर्ता दिलीप जायसवाल

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