गुरुवार, 13 अगस्त 2009

जब वो राखी बेच रहा था...

राजीव ने पत्रकारिता के क्षेत्र में षानदार कैरियर का सपना देखा था लेकिन रक्षाबंधन की पूर्व संध्या पर वह अपने विष्वविद्यालय के पास ही फुटपाथ पर राखी बेच रहा था। वह विष्वविद्यालय से डिग्री लेकर निकल चुका है और कहीं नौकरी नहीं मिलने पर अपनी नियति को समझाने की कोषिष कर रहा था, हालांकि जब उसने मुझे उस दिन देखा तो असहज महसूस करने लगा। वह इसलिए भी क्योंकि मैं कालेज में उसका जूनियर रह चुका था। दुकान के बारे में पूछने पर कहने लगा, दुकान उसकी नहीं है, परिचित के अंकल की दुकान होने पर टाईमपास के लिए आ गया है, लेकिन बेचने और पैसा लेने का काम भी खुद कर रहा था। मुझे यह सब देखकर बढ़ा अफषोस हुआ, वह इसलिए ज्यादा क्योकि वह और उसके साथी सभी पत्रकारिता के क्षेत्र में नाम कमाना चाहते थे, लेकिन वे विष्वविद्यालय से सिर्फ डिग्री लेकर ही निकल सके। पत्रकारिता का व्यवहारिक ज्ञान और धरातल में काम करने वाले पत्रकारों जैसा कुछ भी नहीं सीख सके। षायद यही कारण की उन्हें कोई काम नहीं मिला, जबकि डिग्री मिले दो महीने हो गये थे। राजीव को ऐसा देखकर यह भी सोचने को मजबूर हो गया कि परिवार के सदस्यों ने कितनी उम्मीद के साथ उसे दूसरे राज्य में पढ़ने के लिए भेजा होगा कि बेटा पढ़कर पत्रकार बनेगा और नाम करेगा, पर जो नजर आ रहा था उसमें सब धरा का धरा हुआ दिखाई दे रहा था। राजीव ही नहीं बल्कि और भी कई सीनियर नौकरी के लिए डिग्री लेने के बाद खाक छान रहे हैं, लेकिन इंटरषीप के बाद उन्हें कहीं नौकरी नहीं मिली और कईयों को तो इंटरषीप में भी जाने का मौका नहीं मिला। यह सब बता कर किसी का मजाक उड़ाना नहीं चाहता या किसी संस्था को बदनाम नहीं करना चाहता, लेकिन सच्चाई देखकर अपने कलम को नहीं रोक सका। यह सब बताने का इतना ही मकषद है कि पत्रकारिता की डिग्री भर से पत्रकारिता की दुनिया नहीं चल जाता। इसके लिए काम तो आना ही चाहिए, वह भी ऐसी की कंपनी खुष हो जाये, साथ ही मीडिया के इस सेक्टर में जान और पहचान भी जरूरी है, जिसे आप पहुंच कह सकते हैं।
प्रस्तुतकर्ता-दिलीप जायसवाल

1 टिप्पणी:

sarita argarey ने कहा…

पत्रकारिता पढ़ने- पढ़ाने की चीज़ नहीं है । पत्रकार बनाने की दुकान खोलने वाले धन्ना सेठ हो रहे हैं । विश्वविद्यालय और कॉलेजों में जिन लोगों को पढ़ाने का ज़िम्मा सौंपा गया है ,वे या तो नाकाबिल हैं या राजनीतिबाज़ । तदर्थ्वाद के भरोसे चलने वाले संस्थानों से निकलने वाले छात्रों का भविष्य क्या होगा ये बताने की ज़रुरत नहीं । वैसे पत्रकारिता का पेशा जोश और जुनून माँगता है । आजकल जो लोग पत्रकार बनना चाहते हैं उनकी निगाह मॆं कैमरे के सामने ऊलजलूल बकबक ही पत्रकारिता है । ्जब तक लक्ष्य स्पष्ट नहीं होगा ,तब तक मंज़िल हासिल करने की चाहत फ़िज़ूल है । वैसे ज़मीर बेचने से बेहतर राखी बेचना ही है ।