गुरुवार, 5 फ़रवरी 2009

कागजो में संरक्षण, पुरात्ताविक स्थलों और स्मारकों की सुरक्षा खतरे में


छत्तीसगढ़ के संरक्षित पुरात्ताविक स्थलों तथा स्मारकों की सुरक्षा के नाम पर सिर्फ खाना पूर्ति की जा रही है। चाहे वह कभी दक्षिण कौशल की राजधानी रहे सिरपुर की बात हो या फिर सरगुजा स्थित डीपाडीह की कल्चुरी काल की प्राचीन मूर्तियों की । सरकार द्वारा पुरात्ताविक स्थलों के विकास के साथ ही उन्हें पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने की योजना बनाई गई । 59 स्मारकों को संरक्षित किया गया । संरक्षित करने के बाद पुरातत्व विभाग सुरक्षा के लिए केयरटेकटरों तथा दैनिक वेतन भोगी कर्मचारियों की नियुक्ति की , लेकिन सुरक्षा भगवान भरोसे है। इन संरक्षित स्मारकों में जाकर इसे और अच्छे से जाना जा सकता है।
पुरात्ताविक स्थलों की सुरक्षा के लिए सरकार द्वारा अभी तक कोई सख्त कदम नहीं उठाया जा सका है। यह जरूर है जब सिरपुर, कान्केर,बिलासपुर,अम्बिकापुर , मल्हार से मूर्तियों की चोरी शुरू हुई और पता चला कि इसमें अंतर्रायीय गिरोह शामिल है तो पुलिस सक्रिय हुई । इन घटनाओं के बाद माना जा रह था कि सरकारी नुमाईदें गंभीर होंगे लेकिन ऐसी स्थिति दिखाई नहीं दी है। जब 59 स्मारकों की सुरक्षा का जिम्मा पुरातत्व विभाग ने लिया तब तक डेढ़ दर्जन मूर्तियों की चोरी हो चुकी थी । इनमें से कुछ मूर्तियां तो मिल गई लेकिन शेष मूर्तियों का कोई पता नही चला। सुरक्षा के लिए विभाग द्वारा हर साल 30 लाख रूपए खर्च करने की योजना बनाई गई है।सुरक्षा के लिए 22 केयरटेकरों तथा 68 दैनिक वेतन भोगी कर्मचारियों की नियुक्ति की गई है। लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि ये कर्मी सुरक्षा की दृष्टि से सफल नहीं दिखाई दे रहे हैं।
सिरपुर की बात करें तो यहां की सुरक्षा भगवान भरोसे है। यह जरूर है कि लक्ष्मण मंदिर से मूर्ति चोरी होने के बाद सर्तकता बरती जा रही है। लेकिन सच्चाई यह भी है कि सिरपुर स्थित पुरात्ताविक स्मारक कई स्थानों में दूर-दूर पर है । इसके कारण सुरक्षा कर्मी भी मानते हैं कि दिन में तो किसी तरह वे संभाल लेते है लेकिन रात में पूरी सुरक्षा संभव नहीं होती । सूत्रों की माने तो मूर्तियों का चोर गिरोह अभी भी सक्रिय है और उसकी नजर सिरपुर में खुदाई से निकले प्राचीन बेस कीमती मूर्तियों पर है। चोर गिरोह की सक्रियता खुदाई में मिले बौध्द स्तुप के बाद और भी बढ़ गई है। आसपास के लोगों की बात माने तो यहां से कई मूर्तियां चोरी हुई हैं लेकिन वे सरकारी फाईलों में दर्ज नहीं हुए हैं। यहां रेस्टहाऊस के पास स्थित पुरात्ताविक स्मारक की सुरक्षा के नाम पर लगे लोहे के ग्रील को फांदकर कोई भी अंदर जा सकता है। इसकी सुरक्षा मध्यप्रदेश जमाने के पुरात्तत्व विभाग का एक बोर्ड कर रहा है। सिरपुर के पुरात्ताविक स्मारकों को सुरक्षित कर पर्यटन की दृष्टि से विकसित करने 70 लाख रूपए की मंजूरी मिल चुकी है। इसके तहत पुरात्ताविक संग्राहल का निर्माण किया जायेगा। गौरतलब है कि सिरपुर में पहली खुदाई सन् 1953-54 में सागर विश्वविद्यालय के पुरातत्व विद डॉक्टर एम.पी.दीक्षित के नेतृत्व में हुआ था वहीं अभी पिछले तीन वर्षो में 32 टीलों की खुदाई हुई है।बताना लाजिमी होगा की सुरक्षा का अभाव होने के कारण यहां की खुदाई के लिए पुरातत्वविद्वो द्वारा अनुमति नहीं दी जा रही थी । अब जब खुदाई चल रही है इसके बाद भी सुरक्षा पर कई प्रकार के सवाल उठने लगे हैं।
राज्य के उत्तर में स्थित सरगुजा जिले के डीपाडीह में कल्चुरी काल की सैकड़ों मूर्तियां बिखरी हुई पड़ी है। वहीं महेशपुर,देवगढ़ की मूर्तियों की सुरक्षा व संरक्षण भगवान भरोसे छोड़ दिया गया है। महेशपुर में शिव मंदिरों का भगन्नावेश भी असुरक्षित है । देवगढ़ की मूर्तियों को स्थानीय कलाकारों द्वारा विकृत किया जा रहा है। वहीं सरगुजा में ही स्थित जोगीमारा में मिले शैलचित्र लगातार नष्ट हो रहे हैं। रामगढ़ से कई मूर्तियां चोरी हो चुकी हैं। कईयों की रिपोर्ट भी पुलिस के पास नहीं है उसके बाद भी ना तो स्थानीय प्रशासन और न ही सरकार इस दिशा में गंभीरता से पहल कर रही है। सरगुजा प्रशासन ने डीपाडीह तथा दूसरे स्थलों से लाकर जिला मुख्यालय अंबिकापुर में दर्जनों मूर्तियों को कलाकेन्द्र में संरक्षित करने का प्रयास किया था लेकिन यहां से मूर्तियां गायब हो गई । यही नहीं अब तो कलाकेन्द्र का आस्तित्व ही खत्म हो गया है।
सिर्फ पर्यटन के विकास और कागजों में संरक्षण की बात करने से ही ऐतिहासिक धरोहरों को सुरक्षित रख पाना आसान नहीं दिखता। सरकार को पुरात्ताविक स्मारको तथा स्थलों की सुरक्षा के लिए गंभीरता से कदम उठाने की जरूरत है नहीं तो छत्तीसगढ़ की ऐतिहासिक गाथा को समेट कर रख पाना सहज नहीं होगा।
प्रस्तुतकर्ता दिलीप जायसवाल

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