बुधवार, 25 फ़रवरी 2009

विश्वास की बात विश्वास के लिए...

किस पर विश्वास किया जाये, कैसे विश्वास किया जाये। यह सवाल लगातार गहराता जा रहा है। समाज में संचार के साधनों का तेजी से विकास हुआ है, लेकिन दूसरी तरफ उसी के साथ विश्वास पर भी संकट का बादल गंभीर हुआ है। स्थिति ऐसी हो गई है कि मां और बाप पर विश्वास नहीं रहा। भाई- बहन , पति- पत्नी, प्रेमी- प्रेमिका के बीच विश्वास का रिश्ता टूटता जा रहा है। कई तो ऐसे भी मिल जाते हैं, जिनका यह भी कहना होता है कि उन्हें खुद पर विश्वास नहीं है। कहने का मतलब साफ है कि अब घर के सदस्यों के बीच से भी विश्वास गायब हो गया है। ऐसे में जब हम राज्यों और देशों के बीच विश्वास की बात करते हैं , तो हमें खुद को भी झांक कर देखने की भी जरूरत है। विश्वास की बात कर रहा हूं तो मेरे जेहन में यह बात भी आती है कि आखिर इसके लिए कौन जिम्मेदार है। शायद कोई अकेला इसकी जिम्मेदारी नहीं ले सकता जैसे आतंकवादी किसी हमले या विस्फोट की जिम्मेदारी ले लेते हैं। आज व्यक्ति रोबट की तरह हो गया है। वह सिर्फ दौड़ रहा है, उसे यह भी नहीं मालूम कि वह जो कर रहा है वह क्या कर रहा है? उसके करने से परिणाम क्या होगा, सोचने तक की फुर्सत नहीं है। हालत यह कि आज जब व्यक्ति सुबह उठता है और काम के लिए निकलता है,तब तक उसका बेटा सोता रहता है और जब काम करके रात में लौटता है तो बेटा सो गया रहता है। वह जन्म लेने के कुछ साल तक तो कभी कभार ही अनजाने में बाप का चेहरा देख पाता है। जब स्कूल जाने के काबिल होता है तो उसे किसी हास्टल में भेज दिया जाता है, पढ़ाई की उम्र तक यूं ही चलता रहता है और उसे परिवार से विश्वास की शिक्षा ही नहीं मिल पाती। विश्वास की चिंता मुझे यादा ही सताती है, क्योंकि यह लगातार नष्ट होता जा रहा है, इसके बिना हम विकास की भले कोई भी ऊंचाई क्यों न छू लें जब तक विश्वास की छाया परिवार समाज के बीच नहीं होगी, सुखद समाज की कल्पना नहीं की जा सकती। समाज में अविश्वास का फैलता जहर कितनों कि हत्या कर रहा है, यह कोई बताने वाली बात नहीं है। कुछ नेताओं को मंच से इसकी चिंता भी सताती है, लेकिन मंच से उतरते ही अविश्वास की छाया उन्हें घेर लेती है। आखिर विश्वास बहाली कैसे हो पायेगा, जरा सोचिये।

2 टिप्‍पणियां:

संगीता पुरी ने कहा…

सही है ... विश्‍वास समाप्‍त होता जा रहा है...

cg4bhadas.com ने कहा…

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