छत्तीसगढ क़ो नक्सली समस्या मध्यप्रदेश काल से विरासत में मिली हैं। छत्त्तीसगढ तीन दशक से नक्सली समस्या से जूझ रहा है। राज्य बनने के बाद नक्सलियों की गतिविधियां तेज हुई और सरगुजा तथा बस्तर में खूनी खेल शुरू हुआ। आठ सालों में सैकड़ों पुलिस के जवान, नक्सली और आम आदमी मारे गये। ऐसे में नक्सलियों ने सरकार से शांतिवार्ता की पेशकश की है। नक्सलियों के ह्रदय परिवर्तन को बता रही है। सरकार भी नक्सलियों से बातचीत के लिए तैयार है। जो सुखद है,लेकिन बातचीत से पहले नक्सलियों द्वारा रखी जा रही शर्ते सरकार के सामने उलझन पैदा करती हुई दिख रही है। अगर बातचीत निशर्त: होती है तो महत्वपूर्ण होगा।मीडिया से नक्सली प्रवक्ता कामरेड पांडू ने जिस तरीके से बातचीत की पेशक श की है और कहा है कि सरकार के मंत्री उनके साथ अबुझमाड की जंगल में आकर बातचीत कर सकते हैं। वे सुरक्षा की गांरटी लेते हैं और सरकार के लोग नहीं आना चाहते तो उन्हें बुलाएं , वे रायपुर आ सकते हैं। ऐसे मे एक बात तो साफ है कि नक्सली भी अब खून खराबा नहीं चाहते । हालांकि पांडू ने कहा है कि यह उनका युध्द विराम का प्रस्ताव मात्र है इसे युध्द विराम नहीं समझना चाहिए। उधर पांडू ने यह साफ कर दिया है कि नक्सली राष्ट्रीय स्तर पर शांति वार्ता के लिए तैयार हैं। नक्सलियों से पहले भी राय सरकार बातचीत के लिए मंचों से बात करती रही है लेकिन नक्सली बातचीत करने के लिए तब दिखाई दे रहे हैं जब उन्हें एहसास हो गया है कि जिस उद्देश्य से नक्सल आंदोलन शुरू हुआ था उसमें भ काव आ गया है। वहीं बस्तर घनघोर जंगल में सुरक्षा एजेंसियों के जवानों की जवाबी कार्यवाही भी नक्सलियों की कमर तोडी है। बात चाहे जो भी हो सरकार को सजगता के साथ आगे बढ़कर काम करने की जरूरत है। मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह ने कहा है कि बातचीत के लिए अधिकारियों का पैनल तैयार किया जायेगा। वहीं गृहमंत्री ननकीराम कंवर ने नक्सलियों के इस फैसले का स्वागत किया है और कामरेड पांडू को शांति वार्ता की पेशकश करने पर बधाई दी है।नक्सलियों द्वारा शांति वार्ता के लिए आधा दर्जन मांग सामने रखा गया है। जिसे सरकार को गंभीरता से लेने की जरूरत है। जो शर्ते रखी गई है। उनमें सलवा -जुडूम को बंद करने, सिंगावरम में हुए नरसंहार की जांच एवं कार्यवाही , सलवा-जुडूम शिविरों को बंद करने , छत्तीसगढ़ में जन सुरक्षा अधिनियम को रद्द करने नक्सलियों और उनसे जुडे संगठनों पर लगाया गया प्रतिबंध हटाया जाये, जंगल में कार्पोरेट सुरक्षा या अर्धसैनिक बलों तथा कोबरा बटालियन जैसी फौज रद्द कर उन्हें वापस भेजने की मांग शामिल है। जहां तक सलवा -जुडूम की बात है सरकार इसे अब तक ग्रामीणों का स्व स्फूर्त आंदोलन बताती रही है। सरकार से सहयोग और सुरक्षा प्रदान करने की बात करती है। सलवा जुडूम पर सुप्रीम कोर्ट भी सवाल उठा चुका है। वहीं सलवा जुडूम के शिविरों में 60 हजार से यादा लोगा रह रहे हैं। ऐसे में सलवा जुडूम बंद कराने से पहले नक्सलियों को विश्वास जीतने की जरूरत है। सलवा जुडूम के लोगों का घर भी नहीं बचा है और खेती किसानी भी चौपट हो गई है। ऐसे में शिविरों को बंद कर उन्हें नई जिन्दगी दिलाना भी एक बड़ी चुनौति होगी । सलवा जुडूम के अलावा दूसरी शर्तो को भी आसानी से नहीं माना जा सकता क्योंकि सुरक्षा की लिहाज से कुछ शर्तों को स्वीकार करना किसी खतरे से कम नहीं है। अगर बातचीत को सफल होती है तो छत्तीसगढ़ के इतिहास में यह हमेशा के लिए दर्ज हो जायेगा कि भाजपा की रमन सरकार नक्सलियों के युध्द विराम के प्रस्ताव को स्वीकार करने में सफल रही । कामरेड पांडू और छत्तीसगढ़ की मीडिया भी इतिहास के पन्नों पर दिखाई देगी। इन सब बातों से पहले सरकार के नेता मंत्रियों और सरकारी नुमाईंदों को यह हमेशा के लिए याद रख लेना चाहिए कि शांति वार्ता के बाद कभी ऐसी स्थिति न बने जिससे कोई हिंसात्मक आंदोलन शुरू हो। वर्तमान का सामाजिक , राजनैतिक ,आर्थिक तथा व्यवस्था रूपी ढंाचा पूरी तरह संक्रमित हो चुका है। जिसे शांति वार्ता होने के बाद ठीक कर पाना सरकार के सामने बडी चुनौती होगी । यहां पर उल्लेख करना जरूरी होगा कि राय सरकार जहां एक ओर नक्सलियों से बातचीत करने का पहले से ही प्रयास कर रही थी । वहीं मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह कुछ दिन पहले एक पुस्तक विमोचन के कार्यक्रम में यहां तक बोल दिये कि अब वे जवानों से कहेंगे शहीदों के लिए मोमबत्ती जलाना छोड़ों और गोली चलाओं । वहीं गत दिनों नागपुर में भाजपा की आयोजित राष्ट्रीय कार्यकारणी समिति की बैठक में गुजरात के मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा था कि हिंसा का जवाब हिंसा से दिया जायेगा। नेताओं को भी चाहिए कि वे ऐसी उग्र और असवैधानिक बात करने से पहले जरा सोच लें। जुबान बहुत बड़ी चीज होती है, हीरों बनने के लिए इसका वहीं तक उपयोग करना चाहिए जहां तक बात दिल को स्वीकार्य हो।प्रस्तुत्तकर्ता दिलीप् जायसवाल्
शुक्रवार, 13 फ़रवरी 2009
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें