शुक्रवार, 27 फ़रवरी 2009

नक्सलियों से शांतिवार्ता विफल, दो पाटो के बीच पिसते आदिवासी

छत्तीसगढ़ में नक्सलियों से शांतिवार्ता की राह अब आसान नहीं दिखाई दे रही है। नक्सलियों ने ही शांति वार्ता के लिए कदम आगे बढ़ाया था और सरकार ने भी इसका स्वागत किया था। शांतिवार्ता को आगे बढ़ाने सरकार ने मीडिया को बीच में लाया ,लेकिन अब खुद मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह नक्सलियों से तब तक बातचीत के लिये तैयार नही हैं जब तक नक्सली हिंसक गतिविधियां बंद नहीं करते। ऐसे में सरकार सुरक्षा बलों के माध्यम से नक्सलियों पर दबाव बनाकर निपटने की रणनीति बना रही है। मध्यप्रदेश काल से छत्तीसगढ क़ो नक्सली समस्या विरासत में मिली । जब राज्य बना तो नक्सली गतिविधियां तेज हुई और बस्तर सहित पूरा सरगुजा नक्सलियों की चपेट में आ गया । लेकिन जब पिछले साल भर के भीतर खासकर दक्षिण बस्तर में नक्सलियों पर सुरक्षाबल के जवान हावी हुए तो नक्सली प्रवक्ता पांडू का बयान आया कि वे शांति वार्ता के लिए तैयार हैं। आदिवासियों का वे विकास चाहते हैं। सरकार ने भी नक्सली नेता के इस पहल का स्वागत किया । यही नहीं प्रदेश के गृहमंत्री ननकीराम कंवर ने नक्सलियों से बातचीत में मध्यस्ता के लिए मीडिया को आगे आने का आव्हान किया। नक्सलियों के इस पहल के बाद भी नक्सली वारदातें नहीं रूकी और जब मीडिया ने नक्सली प्रवक्ता पांडू से इस पर पूछा तो उसका कहना था कि उन्होंने शांति वार्ता के लिए पहल किया है। जब सरकार इसे स्वीकार कर लेगी तभी उनकी कार्यवाही रूकेगी। वहीं दूसरी तरफ मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह एवं गृहमंत्री श्री कंवर ने साफ तौर पर कह दिया है कि जब तक नक्सली गतिविधियां नहीं रूके गी, नक्सलियों से बातचीत संभव नही है। गौरतलब है कि नक्सलियों ने बातचीत के लिए सरकार के मंत्रियों और अधिकारियों को जंगल में बुलाया था और सुरक्षा का आश्वासन भी दिया था यहीं नहीं यह भी कहा था कि अगर वे जंगल में नहीं आना चाहते, नक्सली खुद आने को तैयार है। अब जब नक्सलियों से शांति वार्ता का रास्ता कठिन दिखाई दे रहा है वहीं जब यह पहल नक्सलियों की ओर से हुई थी,नक्सली हिंसा झेल रहे लोगों को अच्छा समाचार मिला था। लेकिन उस समय भी यही बात सामने आ रही थी कि क्या सरकार हिसंक गतिविधियां जारी रहने की बात करेगी। नक्सलियों से शांति वार्ता के लिए सरकार के रणनीतिकार योजना भी बनाने लगे थे और सरकार ने नक्सलियों को बातचीत के लिए रायपुर आमंत्रित किया था। शांति वार्ता का कदम अब शायद कभी हो पाये,सरल नहीं लग रहा है। नक्सलियों से शांतिवार्ता के लिए जब गृहमंत्री ननकीराम कंवर ने मीडिया को आगे आकर बात आगे बढ़ाने का निमंत्रण दिया था, उस समय यह भी सवाल उठा था कि सरकार एक तरफ जनसुरक्षा अधिनियम बनाकर रखी है और दूसरी तरफ नक्सलियों से शांतिवार्ता में मीडिया को सहभागी बनने का आमंत्रण दिया जा रहा है। इसी पर मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह के संसदीय सलाहकार अशोक चतुर्वेदी का मानना है कि मीडिया को शांति वार्ता की कार्यवाही में शामिल नहीं करना चाहिए । वे कहते हैं कि आंध्रप्रदेश में क्या हुआ, मीडिया को यहीं कारण था कि वह बदनाम होना पड़ा। नक्सलियों से बातचीत का रास्ता भले ही बंद होता दिखाई दे रहा हो लेकिन अगर संभव हुआ होता तो छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा जन सुरक्षा अधिनियम पर भी कई सवाल उठते । ये सवाल इस लिए उठते क्यों कि जब यह अधिनियम बना तो पत्रकारों पर भी नक्सली वारदातों से जुड़ी खबरों एवं मीडिया द्वारा नक्सलियों का साक्षात्कार लेने पर बंदिश दिखाई दे रही थी। लेकिन बताना लाजमी होगा कि सरकार द्वारा मीडिया के प्रति नक्सली मुद्दे को लेकर सकारात्मक रूख अपनाया गया और 15 दिन पूर्व पत्रकारों ने बीहड ज़ंगल में जाकर नक्सलियों के भूमकाल आंदोलन पर आयोजित कार्यक्रम में नक्सली नेता से बातचीत की। चाहे जो भी हो शांति वार्ता का प्रयास विफल हो गया है । ऐसे में सवाल यह भी उठ रहा है कि क्या हिंसा का जवाब हिंसा से ही दिया जायेगा और सुरक्षाबलों तथा नक्सलियों के बीच पीस रहे आदिवासी आजाद हो पायेंगे।

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