शुक्रवार, 13 नवंबर 2009

आलीशान होटल और गाड़ी नहीं मांगते, उन्हें मंच पर समय तो दे दो



छत्तीसगढ़ राज्य स्थापना दिवस के नौ साल पूरे होने पर सात दिन तक चले राज्योत्सव में जनता का करोड़ों रुपए खर्च हुआ। यह वही पैसा है जिसे लोग कभी पानी के नाम पर तो कभी साफ-सफाई के नाम पर सरकार को टैक्स देते हैं। हालांकि लोगों ने भी इस आयोजन पर खूब मनोरंजन किया। राजधानी रायपुर में आयोजित इस जलसे में मैं पहली बार पहुंचा था।

उत्सव में राज्य के बाहर से भी कई कलाकार सातों दिन पहुंचे, जिन्हें लोगों ने खूब देखा और सुना। इन कलाकारों को लाखों रुपए फीस बतौर संस्कृति विभाग द्वारा दिया गया। दर्शकों ने उत्सव के दौरान बड़ी संख्या में युवाओं का एक ऐसा भी वर्ग था जिसने इन कलाकारों के कार्यक्रमों के दौरान कुर्सियां और वेरिकैट्स भी तोड़ी। इस पर पुलिस को लाठी भी लहरानी पड़ी।

उत्सव के आखिरी दिन समापन अवसर पर मध्य-प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान के आगमन पर मुझे उसकी रिर्पोटिंग के लिए भेजा गया। अतिथियों के पहुंचने में देर थी। इस दौरान दूसरे मंच में छत्तीसगढ़ी लोकनृत्यों और गीतों की प्रस्तृति हो रही थी। इन कलाकारों के लिए कार्यक्रम उद्द्योषक के मन और जुबान में भी सम्मान की भावना नहीं थी। यही नहीं मौजूद दर्शक जिनमें संभ्रांत समझे जाने वाले परिवारों के लोग शामिल थे, वे भी इनकी प्रस्तुतियों को नहीं देख-सुन रहे थे। इन कलाकारों के लिए अपनी प्रस्तुति देने के दौरान समय की भी पावंदी थी, जबकि कलाकार और भी प्रस्तुतियां देना चाहते थे।

इन कलाकारों को कभी-कभार ही ऐसे मंचों में अपनी कला को दिखाने का मौका मिलता है। जब कार्यक्रम चल ही रहा था, उद्द्योषक ने समय खत्म होने की बात कही। इस पर कलाकारों ने एक और लोकनृत्य प्रस्तुत करने की इच्छा प्रकट की। यह देख उद्द्योषक ने ऐसा जबाब दिया मानों वह इन कलाकारों पर बहुत बड़ी मेहरबानी कर दिया हो।

इन बातों का उल्लेख करना इसलिए भी जरूरी हो जाता है कि लाखों रुपए लेकर आने वाले कलाकारों के लिए कोई समय सीमा नहीं होती। कम-से- कम अपने कलाकार आने के लिए मंहगी कार और मंहगी होटलों में ठहरने की बात तो नहीं करते, जैसा कि लाखों रुपए लेने वाले करते हैं। ऐसे में इन कलाकारों के लिए मंच में कत-से-कम इतना समय तो होना ही चाहिए ताकि वे भी अपना जौहर दिखा सकें। वहीं दर्शक भी उन्हें दोयम दर्जे में देखते हैं, ऐसे में हमारे लोकनृत्य, संस्कृति और संगीत का विकास कैसे होगा ?

संस्कृति विभाग के दफतर में एक दिन इस उत्सव के शुरू होने के पूर्व अधिकारी चर्चा कर रहे थे कि किस कलाकार को मुंबई से बुलाया जाए कि भीड़ ज्यादा जुट सके। यहां मैं खामोश था पर मन-ही-मन सोच रहा था कि इस पर चिंता और चर्चा करने से बेहतर होता कि ये सरकारी नुमांइंदे अपने कलाकारों के माध्यम से लोकसंस्कृति और लोकनृत्यों को आकर्षक बनाने के लिए चिंता कर उसके लिए दर्शकों की ज्यादा संख्या जुटाने की कोशिश करते तो वह राज्य के संस्कृति और पारंपरिक नृत्यों के विकास के लिए महत्वपूर्ण होता।

उत्सव में लोक कलाकारों को प्रस्तुति का मौका दिया गया, लेकिन ऐसा लग रहा था मानो उन्हें अपनी कला के नमूने दिखाने भर के लिए ही कहा गया है। इस पर लोकसंस्कृति और लोकनृत्यों व गीतों के संरक्षक तथा संवर्धन की बात करने वालों के साथ ही यहां कि आबो हवा में पले बड़े लोगों को भी चिंता करने की जरूरत है, ताकि उनके रग-रग में यहां कि संस्कृति रची बसी रहे।
दिलीप जायसवाल

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