शनिवार, 14 नवंबर 2009

हर गांव में पैदा हो जाती माता राजमोहनी

छत्तीसगढ़ में आदिवासियों के विकास में षराब बड़ा अवरोधक बन चुका है। नये राज्य बनने के बाद यह और भी खतरनाक रूप में दिखाई देने लगा है। पिछले दिनों रायगढ़ जिले के घरघोड़ा क्षेत्र में षराब के नषे में एक व्यक्ति ने मां, पत्नि समेत बच्चों की हत्या कर आत्महत्या कर ली। ऐसी घटनाएं इस आदिवासी बाहुल्य राज्य के परिपे्रक्ष्य में सोचने को मजबूर करती है।
कुछ सालों के भीतर विदेषी षराब यहां के दूर-दराज गांव में भी मिलने लगा है। षराब के बिक्री के मामले में राज्य, देष में दूसरे स्थान के बाद पहला स्थान में आता दिखाई दे रहा है। इससे सरकार नुमाईंदांे और नेता, मंत्री, षराब माफिया ही खुष हो सकते है।

घर का महुआ षराब पीने वाला आदिवासी समाज अब विदेषी षराब भी षौक से पीने लगा है। इसके खतरनाक रूप को देखते हुए राजधानी रायपुर के आस-पास ही नहीं बल्कि सरगुजा के दूरस्थ गांवों की महिलाओं ने भी षराब के खिलाफ मोर्चा खोला है। षराब कोचियों के खिलाफ महिलाओं द्वारा आंदोलन किये जाने की खबरें मीडिया में आती रही है, सरगुजा के वाड्रफनगर क्षेत्र के एक गांव की महिलाओं ने गांवों में षराब बनाने और बेचने के खिलाफ आंदोलन छेड़ रखा है। षराब बनाने पर जुर्माना तय किया है। लेकिन वे महिलाएं भी षराब ठेकेदारों के गुर्गो के सामने मजबूर हैं।राज्य बनने के बाद यहां षराब दुकानें दूगुनी हुई हैं। कई दुकानें विरोध के बाद भी रिहायषी स्थानों पर चल रही है। वहीं दूसरी तरफ विकासखण्ड स्तरों पर संचालित मयखानों से कोचिये षराब गांवों तक पहुंचा रहे हैं। इससे ग्रामीण युवा भी बोतल बंद विदेषी षराब की ओर खिंचा जा रहा है।

छत्तीसगढ़ में षराब के दुष्परिणामों को बहुत पहले ही माता राजमोहनी देवी ने समझ लिया था। उन्होंने षराब बंदी के लिए राज्य के सरगुजा, कोरिया, जषपुर, रायगढ़ सहित कई जिलों में सैकड़ों किमी की पैदल यात्रा की थी। सरगुजा के प्रतापपुर क्षेत्र में जन्मी यह बेटी अगर राज्य के हर गांव में कम से कम एक बार भी पैदा हो जाये तो हालत कैसी होगी? फिलहाल माता राजमोहनी देवी की तरह महिलाआंे को आगे आने की जरूरत है। हालांकि वर्तमान समाज में यह इतना सहज भी नहीं है। षांतिपूर्वक षराब के खिलाफ आंदोलन करना और इसमें सफलता पर संदेह है। यह इसलिए क्योंकि सरकार तंत्र और नेता-मंत्री इसकी अपेक्षा नहीं करते। इसके बावजूद अगर राज्य के आदिवासियों का षैक्षणिक, सामाजिक और आर्थिक रूप से विकास का सपना कोई देख रहा है तो उसे इस हालत से निपटना होगा। ऐसा नहीं होगा तो षराब की मदहोषी और भी परिवारों को हमेषा के लिए सुलाने को तैयार है। यह एक ऐसी खतरनाक मदहोषी है जो माता-पिता, पत्नि और बेटे-बेटियों को ही नहीं बल्कि खुद को भी नहीं बचा पाता है।
-दिलीप जायसवाल

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