शनिवार, 21 नवंबर 2009

अभिव्यक्ति पर रोज हो रहा शिवसेना से खतरनाक हमला

जाति-धर्म और भाषा पर राजनीति करने वालों की आंखो की मीडिया किरकिरी बन गया है। आईबीएन के न्यूज चैनल लोकमत के कार्यालय में शिव सेना के कार्यकत्ताओं ने तोडफोड की गई। इस घटना के बाद महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री अशोक चाह्मण का यह बयान कि मीडिया को अपनी सुरक्षा खुद करना चाहिए, लेकिन सवाल उठता है कि फिर उनके जैसे नेताओं को भी अपनी सुरक्षा खुद करनी चाहिए। जनता का करोडो रुपये नेताओ के बंगलों और बीबी-बच्चों की सुरक्षा में खर्च होता है। क्या मीडिया का महत्व इनसे भी कम है। वैसे भी जब आतंकियों की तरह जिस राजनैतिक दल के कार्यकर्ता काम कर सकते हैं वे अपने नेताओ की सुरक्षा भी तो कर सकते हैं।


यह पहली बार किसी पत्रकार या मीडिया संस्थान के दफ्रतर में मारपीट और तोड़-फोड़ नहीं हुई है, इससे पहले भी ऐसी घटनाएं हो चुकी है। तीन वर्ष पूर्व भी एक चैनल के दफ्रतर में इसी तरह की घटना हुई थी। मीडिया पर होने वाले हमलों को लेकर सरकारें गंभीर नहीं है। सरकारों से इनका उम्मीद करना भी बेमानी है।


आईबीएन के लोकमत दफ्रतर में हमले के बाद शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे का यह बयान की उनके कार्यकर्ताओं ने कोई गलत काम नहीं किया है। हमला करने वाले कार्यकर्ता उनके शेर हैं और मीडिया खुद को भगवान न समझे। ठाकरे का यह बयान उसकी सोच को बताने के लिए काफी है।

शिवसेना ही नहीं बल्कि देश में इस तरह की और भी राजनैतिक दल हैं, जिनके विचार ऐसी घटनाओं के माध्यम से सामने आता रहा है। कल की इस घटना पर शिवसेना का यह भी कहना है कि उनके प्रमुख के लिए आपत्तिजनक श्बुढ्ढाश् शब्द का प्रयोग किया गया। शिवसेना और मनसे जैसे पार्टियां इस शब्द से भी अपमानित करने वाले शब्दों का प्रयोग करते रहे है। चाहे वह उत्तर भारतीयों के लिए हो या फिर मराठी नहीं बोलने और सुनने वालों के लिए।

शिवसेना जैसी राजनैतिक पार्टियों द्वारा जिस तरीके से करतूत किये जा रहे है, उससे साफ है कि इन दलों को भारतीय लोकतंत्र की राजनीति से बाहर कर देना चाहिए। महाराष्ट्र की जनता ने पिछले दिनों चुनाव में शिवसेना के प्रति जिस तरीके से अपने मत का प्रयोग किया वह भी इसी की ओर इशारा कर रहा है। वहीं उसी से खींज खाकर पार्टी के कथाकथित कार्यकर्ताओं ने मीडिया के दफ्रतर में हमला किया।


देश भर के पत्रकारों और मीडिया संस्थानों को आपसी व्यवसायिक प्रतिस्पर्धाओं को अलग होकर एकजुट होने की जरूरत है, ऐसा नहीं हुआ तो ऐसी घटनाएं आम हो जायेंगी और लोकतंत्र की चैथे स्तंभ की भूमिका में खड़े मीडिया के खम्भे को खड़ा रखना मुश्किल होगा। वैसे भी इस संक्रमण काल में पत्रकार अपने दायित्वों को विषम परिस्थितियों में पूरा कर रहे हैं। इसका नतीजा क्या मिल रहा है, उदाहरण कल की घटना पर्याप्त है।

जब ऐसी घटनाएं होती है तो समाज में मीडिया पर गैर जिम्मेदाराना होने का भी आरोप लगता है। इस पर भी मीडिया को आत्ममंथन करने की जरूरत है। खास कर उद्योगों की दुनिया से मीडिया में कदम रखने वाले मालिकों को। नहीं तो मीडिया की अभिव्यक्ति पर अप्रत्यक्ष रूप से बाजार और दूसरी शक्तियां जो हमला कर रही हैं, वह इस हमले से भी खतरनाक होगी। फिलहाल जरूरत इस बात की है कि पत्रकार अपने दायित्वों के प्रति हर परिस्थिति में काम करते रहें।

-दिलीप जायसवाल

2 टिप्‍पणियां:

चौहान ने कहा…

35 Rs Ke Daru Ke Botal Pai Bikne Bale Patrakar Ke Pitne Se Kisi Ko Sahanbhuti Nahi Hai.

Shiv Saniko Ne Acha Ki ya Media Ko Apne Aukad Mai Rahna Chiye.

Unknown ने कहा…

ek cricketer se rajniti wala sawaal kar bhawnaao se khelana aisi patrakarita vaishya se kam nahin jo waqt aane ke saath kisi ke bhi saath so jae