गुरुवार, 19 नवंबर 2009

प्यास...

भीषण गर्मी पड़ रही थी, मैं यूं ही अकेला पैदल चला जा रहा था। दूर-दूर तक कोई पेड़ या घर भी नजर नहीं आ रहा था। पैदल चलते-चलते बिल्कुल ही थक चुका था। पैर भी लड़खड़ाने लगे थे। वे आराम मांग रहे थे। प्यास से गला सूख चुका था। मुंह में लार भी नहीं बची थी कि मुंह को गीला रख सकूं। होठ तो कब के सूख चुके थे।

एक नदी दिखाई दी। यह सोच कर कि वहां चेहरा धो लूंगा, एक उम्मीद के साथ कदम आगे बढ़ाया, लेकिन नदी रेत से पटी हुई थी। रेत आग की तरह जल रही थी। गर्म हवा के थपेड़ों से जान निकली जा रही थी। इसी बीच पानी निकालने का एक तरीका सूझा। नदी की रेत को खोदना शुरू किया पर एक बूंद पानी की बात तो दूर नमी भी नहीं मिली।

मेरी नजर तभी मरी हुई मछलियों पर पड़ी, उन्हें एक कौआ खा रहा था। मैं यहां से आगे निकल गया, उस समय दोपहर के कोई दो बज रहे होंगे। कुछ ही दूर पर एक पेड़ दिखाई दिया। पेड़ पर पत्ते नहीं थे, वह पूरी तरह सूख चुका था। चिड़ियों के घोसले के तिनके नीचे बिखरे पड़े थे। मेरी हालत प्यास से बिगड़ने लगी थी। मुझे घर से निकले कई दिन हो चुके थे।

मन ही मन अपनी इस हालत पर सोच रहा था कि मेरी ओर दौड़ता हुआ आठ-दस साल का एक बालक पहुंचा। वह मुझे देख कर रूक गया। वह भी दौड़ने के कारण काफी थक चुका था और हांफ रहा था। वह मेरे पास आकर बैठ गया, उसके हाथ में पानी से भरी बोतल थी। मैंने उससे पूछा कहां से आ रहे हो तो वह बोला पानी की बोतल चोरी करके, पुलिस वाले मुझे ढूंढ़ रहे हैं।

मेरे पीने के बाद बोतल में बचे हुए पानी को वह पी गया और बोतल को वहीं पर छूपा कर बैठ गया। बोतल में अब भी थोड़ा पानी बचा था। मुझे डर लगने लगा कि बालक को ढूंढ़ती हुई पुलिस यहां तक न आ पहुंचे। मेरा डर सच निकला, कुछ देर में एक पुलिस वाला वहां आ पहुंचा। तब तक मुझे नींद आ चली थी और मैं ऊंघन लगा था। उसने मुझे कोंचकर जगाया और पूछा- तुम्हारे पास पानी है ? मैंने देखा उसकी सांस तेज चल रही थी, बालों व चेहरे पर धूल जमी थी और होठ सूखे थे।

मैंने उसे बोतल दे दी। दो घूंट पानी पीकर उसे राहत मिली। उसने बालक को देखा और पूछा- और ला सकता है ? वहां कोई चोर या पुलिस नहीं था। प्यास ने हम सबको एक बना दिया था।
-दिलीप जायसवाल

3 टिप्‍पणियां:

हिन्दी साहित्य मंच ने कहा…

दिलीप भाई लाजवाब लिखा है आपने , क्या कहूँ बस समझिए पढ़ने के बाद कुछ सोचने को मजबुर हो गया , लाजवाब ।

खुला सांड ने कहा…

musibat ke samay saari dushmani aur poochtaach baad me aate hain pahle jaan ki padi hoti hai!!

सतीश पंचम ने कहा…

आज आपकी कई पोस्टें पढी हैं। अच्छा ब्लॉग लगा।