शनिवार, 14 नवंबर 2009

इससे अच्छा है नक्सलियों का साथ

छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित क्षेत्र बस्तर में रहने वाली एक लड़की, जिसे मैंने कभी देखा नहीं है। उसे फोन के माध्यम से जानता हूं, वह कभी-कभी फोन कर बात करती है। कल जब उसका फोन आया तो हाल-चाल पूछने पर वह कहने लगी- मां ने आज बहुत मारा। वहीं पापा भी षराब पी कर आ जाते हैं और घर का माहोल बिगड़ जाता है। मुड़ खराब हो गया तो घर के बाहर खड़ी हूं। कभी-कभी तो मन करता है नक्सलियों के साथ चल दूं। इस तरह जीने से अच्छा है नक्सलियों के साथ ही रहूं, चाहे भले ही वे बाद में मार डाले। मैं उसकी बातों को सुन कर कुछ भी नहीं समझ पा रहा था कि उसे मैं क्या बोलू।

ये लड़की कक्षा दसवीं की पत्राचार के माध्यम से परीक्षा देने की तैयारी कर रही है। वह नियमित पढ़ाई करना चाहती थी, लेकिन कुछ इसी तरह से बनी विपरीत परिस्थितियों के कारण वह नियमित पढ़ाई नहीं कर सकी।

बस्तर जैसे क्षेत्रों में जाने ऐसी कितनी लड़कियां होगी जो विपरीत माहोल को सहन नहीं कर पाने के कारण नक्सलियों के साथ हो खुद के लिए बेहतर महसूस करती होंगी। इस पर चिंता करने की जरूरत है। वह सिर्फ इसलिए नहीं कि वे घर से अच्छा नक्सलियों के साथ को बेहतर मानती है बल्कि इसलिए भी कि ऐसी लड़कियां स्वस्थ्य माहौल पाकर जिंदगी को सकारात्मक रास्ते में कायम रख सकें। पढ़ने-लिखने के सपने को पूरा कर सकें।
-दिलीप जायसवाल

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