सोमवार, 16 नवंबर 2009

मीडिया में गरीबों और शोषितों की बात करने वाला बन जाता है नक्सली


राष्ट्रीय पत्रकारिता दिवस के अवसर पर वरिष्ठ पत्रकार श्रीपाल जोशी ने कहा कि मीडिया में गरीबों, शोषितों की बात करने वाला नक्सली बन जाता है। मीडिया में तट्स्थता और निष्पक्षता का मतलव मीडिया के मालिकों का हित बनकर रह गया है। पूरी पत्रकारिता कार्पोरेट हो गई है। अन्याय, पीड़ा और अत्याचार छापने वाले वर्तमान में सबसे ज्यादा पीड़ा का सृजन कर रहे हैं।

कुशाभाउ ठाकरे पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय रायपुर में आयोजित कार्यक्रम में छात्रों को संबोधित करते हुए वरिष्ठ संचार विशेषज्ञ श्रीपाल जोशी ने कहा कि वर्तमान में प्रभाष जोशी के युग की पत्रकारिता मर गई है। अमेरिकन और यूरोपियन सिद्धांतों पर पत्रकारिता की शिक्षा दी जा रही है। उन्हांने इस पर चिंता जाहिर करते हुए कहा कि यही कारण है कि बड़ा किसान आज मजदूर बन रहा है और शहरों की गंदी बस्तियों में रहने के लिए मजबूर है।


श्री जोशी ने कहा कि आज ऐसे लोग नहीं के बराबर हैं जो अपने मूल्यों के लिए आंदोलन और कष्ट सह सकें। पहले जब संचार माध्यम राज्यों के हवाले था और राज्य सरकारों से आम हाथों में आया, उसके बाद हालत और बिगड़ा। इसका नतीजा है कि मीडिया चंद लोगों के हाथों में चला गया है। खोजी पत्रकारिता का मतलब बेड रूम तक पहुंचना हो गया है, वहीं रियलिटी शो का मतलब इस देश की रियलिटी नहीं बल्कि राखी का स्यंबर है।

कार्यक्रम में भोपाल से पहुंचे वरिष्ठ पत्रकार कमल दीक्षित ने वरिष्ठ पत्रकार प्रभाष जोशी से अपने संबोधन को शुरू करते हुए कहा कि उनमें सरोकारी और मूल्य भ्रष्ट होती पत्रकारिता को लेकर चिंता थी। पत्रकारिता लगातार गैर जिम्मेदाराना हुई है। निष्पक्षता और सरोकारी पत्रकारिता हांसिए पर चली गई है। इसके लिए उन्होंने उपभोक्तावाद और बाजारवाद को जिम्मेदार बताया।

श्री दीक्षित ने कहा कि कुछ दशक के बाद से मीडिया में नियंत्रण करने वालों में होड़ मची हुई है। सत्ता और पूंजी वालों के अलावा बिल्डरों और ठेकेदारों का मीडिया पर नियंत्रण हो गया है। वे अपने स्वार्थों की पूर्ति के लिए मीडिया को सबसे सस्ता साधन मानते हैं। यही कारण है कि मीडिया आज पिछड़े क्षेत्रों के उत्थान के लिए काम नहीं कर रही है।

मीडिया को खुद से आत्म अवलोकन कर नियम बनाना चाहिए। दस वर्षों से पत्रकारिता को कैरियर के रूप में ही देखा जाने लगा है। इसमें कैरियर के अलावा रसूख और ग्लैमर आ गया है । मीडिया सही को गलत और गलत को सही करने का काम कर रहा है। इस पर चिंता करने वालों की संख्या भी काफी कम है। प्रभाष जोशी के निधन पर उन्होंने कहा कि निधन की खबर अखबारों में सिंगल काॅलमों में सिमट गई। जनसत्ता के लिए उन्होंने पूरी जिंदगी बिताई वहां भी निधन के बाद उन्हें खबरों में पर्याप्त सम्मान नहीं मिली। ऐसी बेईमानी और वाहियात स्थिति सोचनीय है। इन मीडिया माध्यमों से उनपर अच्छी चर्चा ब्लागों में हुई ।

उन्होंने प्रभाष जोशी द्वारा छात्रों के लिए कहे गए एक कथन को दुहराया - मैं ज्योतिषियों के पास नहीं जाता । मेरा भविष्य तो आप हैं। पत्रकारिता का भविष्य बनाएंगे तो वह मेरा भविष्य होगा।

पत्रकारिता दिवस के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में विश्वविद्यालय के कुलपति सच्चिदानंद जोशी सहित प्रोफेसर और विश्वविद्यालय से अध्ययन कर निकले मीडियाकर्मी मौजूद थे।
दिलीप जायसवाल/ राम मालवीय

2 टिप्‍पणियां:

सलीम अख्तर सिद्दीकी ने कहा…

aap to kaam ke aadmee hain.
2 नवम्बर के दैनिक 'हिन्दुस्तान' में आइबीएन-7 के मैनेजिंग एडिटर आशुतोष का एक आलेख 'सर कलम करने की विचारधारा' प्रकाशित हुआ है। उस लेख में आशुतोष ने वामपंथ को लोकतन्त्र, मानवाधिकार विरोधी और हिंसा का समर्थक बताया है। आशुतोष ने अपने इस लेख में वामपंथ को कोसने के साथ ही नक्सली आन्दोलन को सिर कलम करने की विचारधारा बताया है। हिंसा का समर्थन किसी भी तरह से नहीं किया जा सकता है। लेकिन मैं इस बात का समर्थन करता हूं कि जब किसी देश के एक वर्ग को हाशिए पर धकेल दिया जाए। उसके साथ नाइंसाफी की जाए। उसके अधिकार उसे नहीं दिए जाएं। उसके हिस्से के पैसे को बिचौलिए डकार जाएं। ऐसे में उस वर्ग को विरोध करने के लिए सामने आना ही चाहिए। उनके विरोध का तरीका भगत सिंह वाला भी हो सकता है और गांधी वाला भी।
http://haqbaat.tk/

एस.के.राय ने कहा…

श्रीपाल जी ! आपने राष्ट्रीय पत्रकारिता दिवस के अवसर पर जो विचार छात्रों के समक्ष रखा हैं ,वर्तमान समय में इस तरह की बातें करना ही अपने आप में बहादुरी से कम नहीं हैं । सचमुच अन्याय ,अत्याचार पर लिखने और कहने वालों को नक्सली करार दिया जा रहा हैं ,यह देश के लिए बहुत ही खतरनाक हैं।यह सोची समझी एक षड़यंत्र हैं । आप जैसे बहादुर लोगों को निडर होकर इस षड़यंत्र के खिलाफ लड़ना ही पड़ेगा और लोगों में जागृति लाने का काम आप जैसे लोग ही कर सकते हैं , वर्तमान समय में इससे बढकर कोई दुसरा पुण्य का काम हो ही नहीं सकता ....