रविवार, 15 नवंबर 2009

जंगल से पहले संसद में बैठने वालों से निपटना जरूरी

नक्सवाद की समस्या को लेकर अब से पहले सरकार इतनी गंभीर पहले क्यों नहीं थी, जितनी गंभीर वह अब दिखाई दे रही है। सरकार कभी नक्सलियों से बातचीत करने की बात करती है, तो कभी उनके आक्रामक तेवर को देखकर बुलेट के बल पर निपटने की योजना पर गंभीरता से काम करने की बात कहती है। सरकार में बैठे कुछ लोेग नक्सलियों पर हमले का विरोध करते हैं। तो कुछ अप्रत्यक्ष तरीके से यह कहने की कोशिश करते हैं कि नक्सली लोकतंत्र पर विष्वास कर रहे हैं और उनके साथ कुछ नक्सली नेता अब लोकतांत्रिक विचारधारा के साथ लौट आये हैं। वहीं कुछ बंदूक के बल पर निपटने की रणनीति को कारगर मानते हैं।

प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और गृहमंत्री पी. चितम्बरम अपने बयानों से इन परिस्थितियों में उलझते नजर आ रहे हैं। प्रधानमंत्री कभी नक्सलवाद को आदिवासियों का सही विकास नहीं होने और उन पर होने वाले अत्याचार को जिम्मेदार बताते है। गृहमंत्री नक्सलियों को संगठित गिरोह बताते हैं।

हमारा मानना है कि जब तक एयर कण्डिशनरों में बैठ कर नक्सलियों और उनसे प्रभावित क्षेत्रों के बारे में योजनाएं बनाई जायेंगी, तब तक हालत में सुधार होने के बजाय यह समस्या और गंभीर होगी। यह समझने की जरूरत है कि नक्सलियों ने कोई दो-चार साल में अपना जड़ इतना गहरा नहीं किया है।

छत्तीसगढ़ के बस्तर और उससे लगे क्षेत्रों की बात करे तो आज भी सरकारी तंत्र नक्सलियों के जड़ को मजबूत करने खाद-पानी दे रहा है। क्षेत्र के गांव में पटवारी और ग्राम सेवक जैसे जमीनी सरकारी नुमाईंदें आज भी आदिवासियों का षोषण कर रहे हैं। जिस बात का जिक्र नक्सल समस्या को लेकर प्रधानमंत्री ने हाल ही के दिनों में किया था।

छत्तीसगढ़ के सरगुजा में पांच साल पहले जिस तेजी के साथ नक्सलियों ने अपना विस्तार किया और उसके जो सहायक तत्व बने वे अभी भी विद्मान हैं। यहां आदिवासियों के विकास और उनके लिए किये गए अधोसंरचना के कार्यों में इतना भ्रष्टाचार हो रहा है। इसे वहां जाकर ही समझा जा सकता है। इस पर न तो राज्य सरकार गंभीर दिखती है और न ही दिल्ली की सरकार। ऐसे में अगर नक्सली यहां अपनी पैठ फिर से मजबूत करते हैं तो इसके लिए जिम्मेदार किसे माना जायेगा। ऐसा नहीं भी होता है तो क्या यहां रहने वालों को उसी हाल में छोड़ दिया जाये और यह मान लिया जाये कि सरकारी नुमाईंदों और नेता मंत्रियों को आम आदमी के विकास के लिए बनने वाली योजनाओं में कमीषन खोरी करने की आजादी मिली हुई है।

ऐसा इसलिए लिखना पड़ रहा है कि चुनाव जीतते ही सांसद और विधायक, मधुकोडा बनना चाहता है। वहीं कई ऐसे कई मुधकोणा भी हैं जिनका चेहरा परदे के पीछे है और असल में इन्हें आज के दौर में नक्सलवाद को पोषित करने के लिए जनक की उपाधी दी जाये तो कोई अतिषयोक्ति नहीं होगी। जंगल और गांव में नक्सलियों से निपटने के पहले ऐसे हस्तियों से निपटने की जरूरत है तभी तो जंगल में भी सूरज की किरणें दिखाई देंगी और रोशनी हमेशा कायम रह सकेगी।

-दिलीप जायसवाल

4 टिप्‍पणियां:

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून ने कहा…

जब तक वोटर गलत लोगों को पार्टी वोटिंग के नाम पर चुनता रहेगा..यही होगा. पार्टी के बजाय सही आदमी को चुनना ज़रूरी है.

Gwalior Times ग्वालियर टाइम्स ने कहा…
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
Gwalior Times ग्वालियर टाइम्स ने कहा…

बहुत अच्‍छा विचारोत्‍तेजक आलेख है, साधुवाद । - नरेन्‍द्र सिंह तोमर ''आनन्‍द'' प्रधान संपादक ग्‍वालियर टाइम्‍स समूह

राजीव रंजन प्रसाद ने कहा…

आपकी बात सही है नक्सली आतंकवादियों के खिलाफ लडी इन्ही कारणों से कभी कारगर नहीं रही है।