छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के नौ साल पर आयोजित जलसे में सरकार के लोगों ने विकास में आम लोगों की सहभागिता की बात कही। यह बात लोग पचाने को कहने पर ही नहीं बल्कि तभी से तैयार है जब राज्य का निर्माण भी नहीं हुआ था। ऐसा कहने की जरूरत आखिर क्यों पड़ रही है, इस पर विचार करने की जरूरत महसूस होती है।
राज्य बनने के बाद से मंत्री और अधिकारी कितने बार विदेश यात्रा कर राज्य के हित में काम किये हैं और वह धरातल पर दिखाई दिया है ? वह धरातल पर दिखाई दिया है तो क्या बिना विदेश की हवा खाये बगैर वह संभव नहीं था। विदेश यात्रा पर चर्चा करना इसलिए महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह अपने सचिवों के साथ दक्षिण अफ्रीका यह बता कर गये कि वहां की औद्योगिक नीति को समझेंगे। वहां के उद्योगपतियों को खनिज सम्पदा के दोहन के लिए आमंत्रित करेंगे, लेकिन यहां पर बड़ी बात सामने आ रही है, वह है कि वे अपने परिवार के सदस्यों के बिना यह यात्रा नहीं कर सकते थे ? खबर तो यह भी है कि मुख्यमंत्री परिवार के सदस्यों के साथ ही नहीं बल्कि उनके सचिव भी सपत्निक थे। आखिर इस तरह आम छत्तीसगढ़ी के पसीने की कमाई का फिजूल खर्च कब तक होता रहेगा। यह पहली बार नहीं है जब ऐसा हुआ हो। इससे पहले भी करोड़ों रूपये विदेश यात्रा के नाम पर हर साल खर्च किया जाता रहा है। विदेश जाने से तो अच्छा होता ये मंत्री और अफसर राज्य के उस अंतिम गांव तक जाते जहां आज भी मवेशी और इंसान एक घाट का पानी पी रहे हैं।
राज्य के विकास की जब भी बात होती है, सरकार द्वारा नक्सल समस्या को जिम्मेदार ठहराया जाता है। आखिर नक्सल समस्या के नाम पर कब तक विकास के गति के पहियों को रोक कर रखा जायेगा और आम आदमी नव राज्य निर्माण की परिकल्पना को सपने में ही देखता रहेगा।
राज्य निर्माण से पहले मध्य प्रदेश द्वारा छत्तीसगढ़ क्षेत्र को उपेक्षित किये जाने का आरोप लगा करता था। अब जबकि छोटा राज्य बना और अकूत खनिज सम्पदा छत्तीसगढ़ को मिला उसके बाद भी यहां के लोगों को अभी भी इसका लाभ नहीं मिल सका है। नौ सालों में अगर उद्योगों की स्थापना हुई है और उसमें किसी को लाभ मिला है तो वे आम छत्तीसगढ़ी नहीं है। उद्योगों में तो आम आदमी मर रहा है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण बालको का चिमनी हादसा है। यह ही नहीं इन उद्योगों से आम आदमी को धूल-धुआं और इनसे होने वाली खतरनाक बीमारियां उपहार में मिली है। इसे जानने के लिए किसी से पूछने की जरूरत भी नहीं है।
राज्य उत्सव पर राज्यपाल ईएसएल नरसिम्हन ने कही कि अशिक्षा और गरीबी दूर किये बिना विकास नहीं हो सकता। यहां सवाल आता है कि अशिक्षा के अंधेरे को दूर करने के लिए राज्य बनने के बाद से अरबों रूपये पानी की तरह बहाया जा चुका है, उसके बाद ऐसे बच्चों की कमी नहीं है जिनके मां-बाप मजबूरी में अपने सपूतों को स्कूल का मुंह तक नहीं दिखा पा रहे है। ऐसे में विकास की परिकल्पना क्या विदेश दौरे से पूरा हो सकता है। सरकार के नुमाईदों को सोचने की जरूरत है, नहीं तो वही हाल होगा जो 53 साल बाद मध्य प्रदेश का है, जहां कुपोषण और गरीबी इस कदर हावी है कि लोग भूख से मर रहे है।
दिलीप जायसवाल
राज्य बनने के बाद से मंत्री और अधिकारी कितने बार विदेश यात्रा कर राज्य के हित में काम किये हैं और वह धरातल पर दिखाई दिया है ? वह धरातल पर दिखाई दिया है तो क्या बिना विदेश की हवा खाये बगैर वह संभव नहीं था। विदेश यात्रा पर चर्चा करना इसलिए महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह अपने सचिवों के साथ दक्षिण अफ्रीका यह बता कर गये कि वहां की औद्योगिक नीति को समझेंगे। वहां के उद्योगपतियों को खनिज सम्पदा के दोहन के लिए आमंत्रित करेंगे, लेकिन यहां पर बड़ी बात सामने आ रही है, वह है कि वे अपने परिवार के सदस्यों के बिना यह यात्रा नहीं कर सकते थे ? खबर तो यह भी है कि मुख्यमंत्री परिवार के सदस्यों के साथ ही नहीं बल्कि उनके सचिव भी सपत्निक थे। आखिर इस तरह आम छत्तीसगढ़ी के पसीने की कमाई का फिजूल खर्च कब तक होता रहेगा। यह पहली बार नहीं है जब ऐसा हुआ हो। इससे पहले भी करोड़ों रूपये विदेश यात्रा के नाम पर हर साल खर्च किया जाता रहा है। विदेश जाने से तो अच्छा होता ये मंत्री और अफसर राज्य के उस अंतिम गांव तक जाते जहां आज भी मवेशी और इंसान एक घाट का पानी पी रहे हैं।
राज्य के विकास की जब भी बात होती है, सरकार द्वारा नक्सल समस्या को जिम्मेदार ठहराया जाता है। आखिर नक्सल समस्या के नाम पर कब तक विकास के गति के पहियों को रोक कर रखा जायेगा और आम आदमी नव राज्य निर्माण की परिकल्पना को सपने में ही देखता रहेगा।
राज्य निर्माण से पहले मध्य प्रदेश द्वारा छत्तीसगढ़ क्षेत्र को उपेक्षित किये जाने का आरोप लगा करता था। अब जबकि छोटा राज्य बना और अकूत खनिज सम्पदा छत्तीसगढ़ को मिला उसके बाद भी यहां के लोगों को अभी भी इसका लाभ नहीं मिल सका है। नौ सालों में अगर उद्योगों की स्थापना हुई है और उसमें किसी को लाभ मिला है तो वे आम छत्तीसगढ़ी नहीं है। उद्योगों में तो आम आदमी मर रहा है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण बालको का चिमनी हादसा है। यह ही नहीं इन उद्योगों से आम आदमी को धूल-धुआं और इनसे होने वाली खतरनाक बीमारियां उपहार में मिली है। इसे जानने के लिए किसी से पूछने की जरूरत भी नहीं है।
राज्य उत्सव पर राज्यपाल ईएसएल नरसिम्हन ने कही कि अशिक्षा और गरीबी दूर किये बिना विकास नहीं हो सकता। यहां सवाल आता है कि अशिक्षा के अंधेरे को दूर करने के लिए राज्य बनने के बाद से अरबों रूपये पानी की तरह बहाया जा चुका है, उसके बाद ऐसे बच्चों की कमी नहीं है जिनके मां-बाप मजबूरी में अपने सपूतों को स्कूल का मुंह तक नहीं दिखा पा रहे है। ऐसे में विकास की परिकल्पना क्या विदेश दौरे से पूरा हो सकता है। सरकार के नुमाईदों को सोचने की जरूरत है, नहीं तो वही हाल होगा जो 53 साल बाद मध्य प्रदेश का है, जहां कुपोषण और गरीबी इस कदर हावी है कि लोग भूख से मर रहे है।
दिलीप जायसवाल
1 टिप्पणी:
दुश्यंत का शेर याद है ना .. एक चिड़िया इन धमाकों से सिहरती है " बस यही हाल है इस प्रदेश का ।
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